मैं संदीप सिंह सम्राट आप सभी को हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूँ। आप सभी से मेरा विनम्र निवेदन है—“प्रकृति नमामि जीवनम्”—कि धरती पर जीवन को कायम रखने के लिए, समस्त जीव-जगत तथा पूरी मानवजाति के भविष्य की रक्षा हेतु हम सभी को एकजुट होकर प्रकृति को बचाना होगा।इसी से हमारा अपना जीवन सुरक्षित रह पाएगा और आने वाली पीढ़ियों का भविष्य भी सुरक्षित हो सकेगा।धरती सभी जीवों का एकमात्र घर है, और हम मनुष्य भी इसी घर के निवासी हैं। हमारा पहला और वास्तविक घर यही धरती है। इसलिए हमें अपने इस घर की रक्षा करनी अनिवार्य है। धरती के सभी जीव हमारे अपने हैं, और उनकी सुरक्षा करना हमारा कर्तव्य है। हम सब प्रकृति की संतान हैं, और संतान का धर्म है कि वह अपनी माँ—माँ प्रकृति—की रक्षा करे, उसका आदर करे तथा उसके संरक्षण हेतु कार्य करे।धरती पर रहने वाला प्रत्येक जीव प्रकृति की ही संतान है—हमारा भाई, हमारी बहन। हमें सभी की सुरक्षा करनी है। हम सबको मिलकर प्रकृति को बचाना है, अपने घर को सुरक्षित रखना है और अपने प्राकृतिक परिवार को संरक्षित रखना है।
आइए, हम सब मिलकर अपने घर की रक्षा करें, उसे सुंदर बनाएँ और प्रकृति को पुनः खुशहाल करें।
हमारी मुहिम “एक धरती – एक भविष्य” में शामिल होकर अपना महत्वपूर्ण योगदान दें। हमारी बात को अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचाएँ, ताकि हम सब मिलकर प्रकृति को पुनः पहले जैसा शांत, सुंदर और समृद्ध बना सकें।
आप सभी से निवेदन है कि हमारी इस पुण्य मुहिम को आगे बढ़ाने में सहयोग दें। हम आपसे कुछ नहीं माँगते—बस इतना अनुरोध करते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति अपना कर्तव्य निभाए और इस संदेश को अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचाए।
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भाग 1 — मनुष्य, प्रकृति और वर्तमान संकट: चेतना और विज्ञान का संगम
🌿 प्रकृति और मानव: एक अटूट संबंध
मनुष्य और प्रकृति का संबंध सदियों से गहरा और जटिल रहा है। प्रकृति ने हमें जीवन के लिए हवा, पानी, भोजन, आवास, ऊर्जा और संसाधन उपलब्ध कराए हैं। लेकिन आज का आधुनिक मनुष्य जितना विकसित है, उसे यह भी पूर्ण ज्ञान है कि उसकी गतिविधियाँ—विकास, उद्योग, तकनीकी प्रगति, उपभोग—प्रकृति को गंभीर रूप से नुकसान पहुँचा रही हैं। फिर भी मानव चेतना के बावजूद वह अपने लाभ के लिए प्रकृति की सीमाओं का उल्लंघन कर रहा है। यह विरोधाभास केवल नैतिक नहीं है; यह हमारे अस्तित्व के लिए वास्तविक खतरा बन गया है।
🌡️ जलवायु परिवर्तन: विज्ञान की गवाही
IPCC (Intergovernmental Panel on Climate Change) और UNEP (United Nations Environment Programme) की रिपोर्टें स्पष्ट करती हैं कि ग्लोबल वार्मिंग कोई भविष्य की कल्पना नहीं, बल्कि वर्तमान यथार्थ है। औद्योगिक युग के बाद से वैश्विक तापमान औसत 1.1°C बढ़ चुका है। यह वृद्धि केवल आंकड़े नहीं, बल्कि हमारी धरती की प्रणाली में गहरी अस्थिरता ला रही है। ग्लेशियर पिघल रहे हैं, समुद्र का स्तर बढ़ रहा है, तूफान और सूखे अधिक तीव्र हो गए हैं। IPCC की AR6 रिपोर्ट के अनुसार, यदि हम अभी कठोर कदम नहीं उठाते, तो 21वीं सदी के अंत तक तापमान 3°C या उससे अधिक बढ़ सकता है।
वैज्ञानिक प्रमाण यह बताते हैं कि जलवायु परिवर्तन का मुख्य कारण मानव द्वारा उत्सर्जित ग्रीनहाउस गैसें हैं। CO₂, मीथेन और अन्य गैसें हमारी ऊर्जा, उद्योग, परिवहन और कृषि गतिविधियों से निकलती हैं। पिछले दशक में उत्सर्जन का स्तर इतिहास में सबसे उच्च रहा है। यदि इसी रफ्तार से उत्सर्जन जारी रहा, तो भविष्य के लिए खतरनाक परिणाम निश्चित हैं।
⚠️ पारिस्थितिक असंतुलन और उसका प्रभाव
जलवायु परिवर्तन का असर केवल तापमान बढ़ने तक सीमित नहीं है। IPCC और अन्य वैश्विक संस्थानों की रिपोर्टें बताती हैं कि:
प्राकृतिक आपदाएँ: हीटवेव, सूखा, बाढ़, तूफान, और अतिवृष्टि बढ़ रही हैं।
जल संकट: बढ़ती गर्मी और बदलते वर्षा पैटर्न से आधी मानव आबादी पानी की कमी का सामना कर रही है।
कृषि और भोजन सुरक्षा: फसल उपज अस्थिर हो रही है, सूखा और बाढ़ कृषि को प्रभावित कर रहे हैं।
जैव विविधता: कई प्रजातियाँ अपने आवास खो रही हैं, पारिस्थितिकी तंत्र असंतुलित हो रहा है।
मानव स्वास्थ्य और समाज: गर्मी, पानी और खाद्य असुरक्षा से रोग, विस्थापन और सामाजिक अस्थिरता बढ़ रही है।
इसका सार यह है कि मानव प्रगति ने प्रकृति के संतुलन को बाधित किया है। उद्योग, उत्पादन, बड़े पैमाने पर उपभोग, और संसाधनों का अनियंत्रित उपयोग प्रकृति और मानव जीवन दोनों के लिए खतरा बन गए हैं।
⏳ “विंडो ऑफ़ अवसर” बंद हो रही है
वैज्ञानिक चेतावनी यह है कि बदलाव की खिड़की तेजी से बंद हो रही है। यदि हम अब नीतिगत और व्यक्तिगत स्तर पर कार्रवाई नहीं करते, तो भविष्य में बहुत बड़े और अकल्पनीय नुकसान होंगे। IPCC रिपोर्ट के अनुसार, 1.5°C तापमान सीमा बनाए रखने के लिए 2030 तक GHG उत्सर्जन में 43–45% कटौती आवश्यक है।
सिर्फ ऊर्जा स्रोत बदलना पर्याप्त नहीं है। हमें उत्पादन, उपभोग, पुनर्चक्रण, सामाजिक उत्तरदायित्व और जीवनशैली में व्यापक सुधार करने होंगे। नीतियों के स्तर पर भी तेजी से परिवर्तन और उद्योगों की जवाबदेही अनिवार्य है।
🧑🤝🧑 मानव जिम्मेदारी और जीवनशैली का महत्व
आपके दृष्टिकोण के अनुसार, प्रत्येक व्यक्ति को यह समझना होगा कि:
जिन वस्तुओं का हम उपयोग करते हैं, वे कैसे बनाई जा रही हैं।
क्या उनका निर्माण प्रकृति और मानव स्वास्थ्य के अनुकूल है।
कंपनियाँ उत्पादन करते समय पर्यावरण का ध्यान रखती हैं या नहीं।
कर्मचारी और समाज के प्रति उनका व्यवहार न्यायपूर्ण है या नहीं।
इस जानकारी के आधार पर ही हमें खरीदारी करनी चाहिए। यदि हर व्यक्ति केवल उन वस्तुओं का उपयोग करे जो पर्यावरण-अनुकूल हों, पुनर्चक्रण योग्य हों, और स्वास्थ्य-सुरक्षित हों, तो यह सामूहिक प्रभाव बनाकर बड़े बदलाव ला सकता है।
🌳 व्यक्तिगत स्तर पर कदम
ऊर्जा और संसाधन की बचत: बिजली, पानी, गैस, ईंधन का संतुलित उपयोग।
पुनर्चक्रण और पुन: उपयोग: प्लास्टिक, कागज़, धातु, कपड़े आदि का पुनर्चक्रण।
पेड़ और हरित क्षेत्र: अधिक से अधिक वृक्षारोपण और पर्यावरणीय संरक्षण।
पारिस्थितिक संवेदनशीलता: जीवों के आवास, प्राकृतिक नदियाँ, जलाशय सुरक्षित रखें।
🌍 सामाजिक और वैश्विक स्तर
समुदाय में जागरूकता: परिवार, मित्र और समाज में पर्यावरण जागरूकता फैलाना।
नीति और कानून: सरकार से टिकाऊ नीतियों और उद्योगों की जवाबदेही की मांग।
वैश्विक सहयोग: जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति अंतरराष्ट्रीय सहयोग और जिम्मेदारी।
✨ निष्कर्ष
आज मानव और प्रकृति के बीच संतुलन बिगड़ रहा है। वैज्ञानिक रिपोर्ट स्पष्ट करती हैं कि जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय संकट मानव-जनित हैं। लेकिन हमारे पास बदलाव का अवसर अभी भी है। प्रत्येक व्यक्ति की जिम्मेदारी है कि वह अपनी जीवनशैली, उपभोग, खरीदारी और सामाजिक व्यवहार में सुधार करे। छोटे-छोटे कदम जैसे:
सोच-समझकर खरीदारी करना
वस्तुओं की उत्पादन प्रक्रिया और पर्यावरणीय प्रभाव जानना
ऊर्जा और संसाधन बचाना
पुनर्चक्रण करना
पेड़ लगाना और जैव विविधता का संरक्षण
इनके समष्टिगत प्रभाव से बड़ा परिवर्तन लाया जा सकता है। यही विज्ञान, नैतिकता और सामाजिक उत्तरदायित्व का संगम है।
🔹 संदेश
“मनुष्य की जिम्मेदारी केवल अपने लिए नहीं, बल्कि पृथ्वी और आने वाली पीढ़ियों के लिए भी है। आज अगर हम प्राकृतिक संसाधनों और पर्यावरण की सुरक्षा में कदम नहीं उठाए, तो कल हमारा जीवन असुरक्षित होगा। सोचें, समझें, जागरूक हों, और अपने रोजमर्रा के निर्णयों में प्रकृति को प्राथमिकता दें। क्योंकि संतुलित जीवन और स्वस्थ पृथ्वी — दोनों हमारी जिम्मेदारी हैं।”
भाग 2 — समाधान और जिम्मेदार जीवनशैली: मानव और प्रकृति का संतुलन
🌱 1. समाधान की दिशा: व्यक्तिगत जिम्मेदारी से शुरू करें
वैज्ञानिक रिपोर्ट और वैश्विक संस्थाएँ स्पष्ट कर चुकी हैं कि जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय संकट का समाधान केवल सरकारी नीतियों या उद्योगों पर निर्भर नहीं है। हर व्यक्ति की छोटी‑छोटी आदतें, जब समाज में व्यापक रूप से अपनाई जाएँ, तो बड़ा बदलाव ला सकती हैं।
व्यक्तिगत कदम:
ऊर्जा का विवेकपूर्ण उपयोग
बिजली, पानी, गैस, और ईंधन का सीमित और प्रभावी उपयोग।
LED बल्ब, ऊर्जा दक्ष उपकरण, और सौर ऊर्जा का विकल्प अपनाना।
घरों में ऊर्जा बचाने वाले उपकरणों का उपयोग करना।
उपभोग और खरीदारी की जागरूकता
खरीदते समय जानें कि वस्तु किस प्रकार बनी है, किन संसाधनों का उपयोग हुआ है।
केवल पर्यावरण-अनुकूल, पुनर्चक्रण योग्य और स्वास्थ्य-सुरक्षित उत्पाद चुनें।
जरूरत से अधिक वस्तुएँ इकट्ठा न करें; जितना उपयोग हो उतना ही खरीदें।
पुनर्चक्रण और पुन: उपयोग
कचरे को अलग करना और पुनर्चक्रण योग्य सामग्री का पुन: उपयोग।
प्लास्टिक, कागज़, कपड़े, धातु आदि का सही पुनर्चक्रण।
स्थानीय स्तर पर कचरा प्रबंधन और सामुदायिक स्वच्छता में सहयोग।
जल और हरित क्षेत्र की सुरक्षा
पानी की बचत, वर्षा जल संचयन, जल स्रोतों की स्वच्छता।
अधिक से अधिक पेड़ लगाना और हरित क्षेत्र बनाए रखना।
प्राकृतिक नदियाँ, तालाब, झरने और जीवों के आवास सुरक्षित रखना।
🏭 2. उद्योग और कंपनियों की जिम्मेदारी
मनुष्य का पर्यावरणीय प्रभाव सिर्फ व्यक्तिगत गतिविधियों तक सीमित नहीं है। उत्पादन और उद्योग भी प्रकृति को प्रभावित करते हैं। इसलिए कंपनियों और उद्योगों की जिम्मेदारी भी उतनी ही महत्वपूर्ण है।
प्रमुख बिंदु:
टिकाऊ उत्पादन प्रणाली
कारखानों में जलवायु-अनुकूल तकनीक का उपयोग।
हानिकारक रसायनों की बजाय पर्यावरण-सुरक्षित विकल्प अपनाना।
ऊर्जा दक्ष मशीनरी और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का प्रयोग।
सामाजिक जिम्मेदारी
कर्मचारियों का न्यायपूर्ण व्यवहार और समय पर वेतन।
श्रमिकों के स्वास्थ्य और सुरक्षा की गारंटी।
स्थानीय समुदायों और पर्यावरण पर सकारात्मक प्रभाव।
पारदर्शिता और जानकारी साझा करना
उत्पादों की निर्माण प्रक्रिया और पर्यावरणीय प्रभाव की जानकारी ग्राहकों के साथ साझा करना।
ग्राहकों को प्रेरित करना कि वे केवल जिम्मेदार और टिकाऊ विकल्प चुनें।
वैज्ञानिक शोध और IPCC की रिपोर्ट बताती है कि यदि उद्योग टिकाऊ और हरित तकनीक अपनाएँ, तो ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में 40–50% तक कटौती संभव है। यही कारण है कि व्यक्तिगत विकल्प और उद्योग की जिम्मेदारी दोनों एक साथ चलें तो बदलाव वास्तविक होगा।
👨👩👧👦 3. सामाजिक और सामुदायिक कदम
समाज और समुदाय में जागरूकता फैलाना भी उतना ही महत्वपूर्ण है। व्यक्तिगत प्रयास अकेले बड़े बदलाव नहीं ला सकते; सामूहिक प्रयास ही स्थायी परिवर्तन करते हैं।
प्रमुख पहलें:
शिक्षा और जागरूकता
बच्चों और युवाओं को पर्यावरण और जलवायु संकट के बारे में शिक्षित करना।
कार्यशालाएँ, सामुदायिक बैठकें और जागरूकता अभियान आयोजित करना।
सामूहिक पर्यावरण संरक्षण
सामूहिक वृक्षारोपण और हरित क्षेत्र का निर्माण।
नदी और तालाब की सफाई में सामुदायिक सहभागिता।
स्थानीय स्तर पर पुनर्चक्रण केंद्र और कचरा प्रबंधन।
नीति और कानून में भागीदारी
स्थानीय, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर टिकाऊ नीतियों की मांग।
पर्यावरण संरक्षण के लिए कानूनों का पालन और निगरानी।
उद्योगों की जिम्मेदारी सुनिश्चित करना।
🌎 4. दैनिक जीवन में पर्यावरण‑हित आदतें
IPCC और UNEP रिपोर्टों के अनुसार, रोजमर्रा के छोटे‑छोटे विकल्प जैसे ऊर्जा बचत, जल संरक्षण, अपशिष्ट प्रबंधन, और उपभोग सीमित करना, सामूहिक प्रभाव से बड़े बदलाव ला सकते हैं।
व्यावहारिक उदाहरण:
यातायात: सार्वजनिक परिवहन, साइकिल, इलेक्ट्रिक वाहन।
भोजन: स्थानीय, जैविक, और मौसमी भोजन। मांसाहार की जगह संतुलित आहार।
कपड़े और वस्त्र: टिकाऊ सामग्री, पुन: उपयोग, और जरूरत के अनुसार खरीदारी।
इलेक्ट्रॉनिक्स और उपकरण: ऊर्जा दक्ष उपकरण, आवश्यकतानुसार उपयोग।
ये छोटे कदम व्यक्तिगत जीवन में आसान हैं और यदि समाज में व्यापक रूप से अपनाए जाएँ, तो ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन, कचरा और संसाधनों के अत्यधिक उपयोग में कटौती संभव है।
💡 5. प्रेरक दृष्टिकोण: “मनुष्य + प्रकृति = संतुलन”
मनुष्य और प्रकृति का संतुलन केवल पर्यावरणीय दृष्टिकोण नहीं है; यह नैतिक और सामाजिक जिम्मेदारी भी है। हमें यह समझना होगा कि:
प्राकृतिक संसाधन सीमित हैं।
हर जीव का जीवन और आवास सुरक्षित रहना आवश्यक है।
मानव स्वास्थ्य और प्रकृति के स्वास्थ्य में गहरा संबंध है।
इसलिए जीवन में संतुलित, जागरूक और जिम्मेदार निर्णय लेना आवश्यक है।
📌 6. उदाहरण और तुलनात्मक अध्ययन
वैज्ञानिक रिपोर्टों के अनुसार:
विकासशील और विकसित देशों में उत्सर्जन अंतर: विकसित देशों का औसत CO₂ उत्सर्जन प्रति व्यक्ति 10–15 टन/वर्ष है, जबकि विकासशील देशों में 1–3 टन/वर्ष।
उद्योग की भूमिका: यदि केवल 10% उद्योग अपने उत्सर्जन और कचरे को नियंत्रित करें, तो वैश्विक GHG उत्सर्जन में 20% तक कमी आ सकती है।
सामूहिक व्यवहार: छोटे कदम जैसे LED बल्ब, पानी बचत, और पुनर्चक्रण अपनाने से स्थानीय स्तर पर तापमान नियंत्रण, जल सुरक्षा और जैव विविधता पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
यह तुलनात्मक अध्ययन दिखाता है कि व्यक्तिगत और सामाजिक उपायों का महत्व भी उतना ही है जितना सरकारी नीतियों और उद्योगों का।
🔹 संदेश
“हमारी जिम्मेदारी केवल अपने जीवन तक सीमित नहीं है। हमें अपने आसपास के वातावरण, जीव-जगत, प्राकृतिक संसाधनों और आने वाली पीढ़ियों के लिए सोचकर निर्णय लेना होगा। हर व्यक्ति जब सोच-समझकर जीवनशैली अपनाएगा, खरीदारी करेगा, ऊर्जा और संसाधन बचाएगा, पुनर्चक्रण करेगा और सामुदायिक प्रयासों में भाग लेगा, तब ही मानव और प्रकृति का संतुलन कायम रहेगा। हर छोटा कदम सामूहिक परिवर्तन की नींव है। आज हम जो निर्णय लेते हैं, वही हमारे और पृथ्वी के भविष्य को सुरक्षित बनाएगा।”
भाग 3 — प्रेरणा, संदेश और सुविचार: प्रकृति और मानव का संतुलन
🌿 प्रकृति के प्रति जागरूकता: अंतिम प्रेरणा
मनुष्य आज जितना विकसित है, उतना ही उसे यह ज्ञान भी है कि उसकी गतिविधियाँ—उद्योग, उपभोग, तकनीकी प्रगति, और दैनिक जीवन—प्रकृति को नुकसान पहुँचा रही हैं। फिर भी, यह जानकर भी हम प्रगति के लिए सीमाओं का उल्लंघन करते हैं। परन्तु विज्ञान, वैश्विक संस्थाओं और जागरूकता के माध्यम से यह संभव है कि हम विकास और प्रकृति के बीच संतुलन बनाएँ। हमारी जिम्मेदारी केवल अपने जीवन तक सीमित नहीं है; यह पृथ्वी और आने वाली पीढ़ियों के लिए भी है।
हमारी रोजमर्रा की गतिविधियाँ—जैसे खरीदारी, ऊर्जा का उपयोग, कचरा प्रबंधन, यातायात और भोजन—प्रत्यक्ष रूप से पर्यावरण पर प्रभाव डालती हैं। यदि हम सोच-समझकर निर्णय लें, पर्यावरण-अनुकूल वस्तुएँ चुनें, ऊर्जा बचाएँ, जल संरक्षण करें, और पुनर्चक्रण अपनाएँ, तो यह छोटे कदम सामूहिक परिवर्तन का रूप ले सकते हैं।
🌎 सामूहिक और वैश्विक दृष्टिकोण
वैश्विक संस्थाएँ जैसे IPCC, UNEP और WWF लगातार चेतावनी दे रही हैं कि जलवायु परिवर्तन का प्रभाव केवल भविष्य में नहीं बल्कि वर्तमान में भी महसूस किया जा रहा है। ग्लेशियर पिघल रहे हैं, समुद्र का स्तर बढ़ रहा है, जंगल कट रहे हैं, और जैव विविधता संकट में है। इन संकटों का समाधान केवल सरकारी नीतियों या उद्योग तक सीमित नहीं है। व्यक्तिगत, सामुदायिक और सामाजिक जिम्मेदारी इसे नियंत्रित करने में उतनी ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
मनुष्य को यह समझना होगा कि टिकाऊ जीवनशैली, पर्यावरणीय सजगता और नैतिक उपभोग ही स्थायी समाधान हैं। कंपनियों को भी उत्पादन और सामाजिक जिम्मेदारी के प्रति पारदर्शी होना होगा। इस तरह व्यक्तिगत विकल्प और औद्योगिक जवाबदेही दोनों मिलकर प्राकृतिक संतुलन स्थापित कर सकते हैं।
📝 दैनिक जीवन के प्रभावी उपाय
ऊर्जा और संसाधनों का विवेकपूर्ण उपयोग।
जल संरक्षण, वर्षा जल संचयन और स्वच्छता।
पुनर्चक्रण और पुन: उपयोग की आदत।
पर्यावरण-अनुकूल और स्वास्थ्य-सुरक्षित वस्तुओं का चयन।
सामूहिक वृक्षारोपण और हरित क्षेत्र संरक्षण।
जीव-जगत और उनके प्राकृतिक आवास की सुरक्षा।
सामुदायिक जागरूकता, शिक्षा और नीति में भागीदारी।
स्थानीय, जैविक और मौसमी भोजन का उपयोग।
सार्वजनिक परिवहन, साइकिल और इलेक्ट्रिक वाहनों का प्रयोग।
समाज में सकारात्मक बदलाव और प्रकृति प्रेम का प्रचार।
इन कदमों का प्रभाव केवल व्यक्तिगत नहीं, बल्कि सामूहिक और वैश्विक स्तर पर स्थायी बदलाव लाता है।
🌟 अंतिम संदेश
“मनुष्य और प्रकृति के बीच संतुलन केवल विकल्प नहीं, बल्कि आवश्यकता है। हमारी जिम्मेदारी है कि हम सोच-समझकर, जागरूक और जिम्मेदार जीवन शैली अपनाएँ। हर निर्णय—चाहे वह खरीदारी हो, ऊर्जा का उपयोग हो या सामाजिक सहभागिता—प्रकृति और मानव समाज दोनों के लिए स्थायी प्रभाव डालता है। छोटे कदम सामूहिक परिवर्तन की नींव हैं। आज यदि हम जागरूक होंगे, तो पृथ्वी और आने वाली पीढ़ियाँ सुरक्षित रहेंगी। इसलिए सोचें, समझें, और अपने हर कदम में प्रकृति को प्राथमिकता दें। संतुलित जीवन और स्वस्थ पृथ्वी हमारी जिम्मेदारी हैं।”
“यह अंश हमारी पुस्तक सर्व साम्य अद्वैत प्रकृति चेतनवाद दर्शन — भाग 1 : नव सवित तत्व प्रकृतिवाद से लिया गया है। इस पुस्तक का उद्देश्य प्रकृति की सर्वोच्च सत्ता की स्थापना करके विश्व में शांति स्थापित करना है, ताकि धरती पर रहने वाले सभी जीवों के जीवन में शांति बनी रहे, मनुष्य के जीवन में भी संतुलन और सौहार्द रहे, तथा सभी मनुष्य आपस में मिल-जुलकर अपने विकास का मार्ग प्रशस्त कर सकें। हमारी प्रकृति से प्रार्थना है कि धरती पर स्थित प्रत्येक जीव सुखी रहे, स्वस्थ रहे।” आप भी चाहते हैं विश्व में शांति तो हमसे संपर्क करें।
जीमेल-: cosmicadvaiticconsciousism@gmail.com
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