पौधों की देखभाल, जीवन की सीख

 

मैं संदीप सिंह सम्राट आप सभी को हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूँ। आप सभी से मेरा विनम्र निवेदन है—“प्रकृति नमामि जीवनम्”—कि धरती पर जीवन को कायम रखने के लिए, समस्त जीव-जगत तथा पूरी मानवजाति के भविष्य की रक्षा हेतु हम सभी को एकजुट होकर प्रकृति को बचाना होगा।इसी से हमारा अपना जीवन सुरक्षित रह पाएगा और आने वाली पीढ़ियों का भविष्य भी सुरक्षित हो सकेगा।धरती सभी जीवों का एकमात्र घर है, और हम मनुष्य भी इसी घर के निवासी हैं। हमारा पहला और वास्तविक घर यही धरती है। इसलिए हमें अपने इस घर की रक्षा करनी अनिवार्य है। धरती के सभी जीव हमारे अपने हैं, और उनकी सुरक्षा करना हमारा कर्तव्य है। हम सब प्रकृति की संतान हैं, और संतान का धर्म है कि वह अपनी माँ—माँ प्रकृति—की रक्षा करे, उसका आदर करे तथा उसके संरक्षण हेतु कार्य करे।धरती पर रहने वाला प्रत्येक जीव प्रकृति की ही संतान है—हमारा भाई, हमारी बहन। हमें सभी की सुरक्षा करनी है। हम सबको मिलकर प्रकृति को बचाना है, अपने घर को सुरक्षित रखना है और अपने प्राकृतिक परिवार को संरक्षित रखना है।
आइए, हम सब मिलकर अपने घर की रक्षा करें, उसे सुंदर बनाएँ और प्रकृति को पुनः खुशहाल करें।
हमारी मुहिम “एक धरती – एक भविष्य” में शामिल होकर अपना महत्वपूर्ण योगदान दें। हमारी बात को अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचाएँ, ताकि हम सब मिलकर प्रकृति को पुनः पहले जैसा शांत, सुंदर और समृद्ध बना सकें।
हमारा नारा है—“एक धरती – एक भविष्य – एक मानवता”
आइए, इस उद्देश्य के लिए एक साथ प्रयास करें और धरती को सुरक्षित रखें।
आप सभी से निवेदन है कि हमारी इस पुण्य मुहिम को आगे बढ़ाने में सहयोग दें। हम आपसे कुछ नहीं माँगते—बस इतना अनुरोध करते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति अपना कर्तव्य निभाए और इस संदेश को अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचाए।
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हम सब मिलकर अपने घर—धरती—को सुरक्षित रखें।
आप सभी का छोटा-सा योगदान भी इस दुनिया को बदल सकता है।
आइए, मिलकर प्रकृति को बचाएँ और भविष्य को सुरक्षित बनाएँ।

धन्यवाद।

🌍अध्याय 10: मानव, प्रकृति और चेतना की एकता

मनुष्य ने अपनी बुद्धिमत्ता और विज्ञान के आधार पर दुनिया को नियंत्रित करने की कल्पना की।वह सोचता है कि प्रगति केवल उसकी भलाई के लिए है।पर उसे यह भूल जाता है कि उसका प्रत्येक कार्य उस विशाल ऊर्जा तंत्र को प्रभावित करता है जिसमें सभी जीव, पेड़-पौधे, जल, वायु और भौतिक पदार्थ जुड़े हैं।मनुष्य अपने ज्ञान और संसाधनों का उपयोग यदि केवल स्वार्थ के लिए करता है, तो यह न केवल प्रकृति को, बल्कि स्वयं को भी नुकसान पहुंचाता है।Emissions Gap Report 2025 स्पष्ट रूप से बताती है कि वैश्विक उत्सर्जन में तेजी से वृद्धि हो रही है और जैव विविधता में गिरावट आ रही है।मानव का यह अंधाधुंध विकास केवल आर्थिक लाभ और सुविधा तक सीमित है।यह केवल पर्यावरणीय समस्या नहीं है, बल्कि मानव और पृथ्वी के अस्तित्व का संकट है।

मानव और प्रकृति का संबंध केवल भौतिक नहीं है।प्रत्येक जीव, प्रत्येक जल स्रोत, प्रत्येक पौधा और प्रत्येक ऊर्जा कण मानव से जुड़ा हुआ है।मनुष्य का कार्य यदि संतुलन में नहीं है, तो पूरी ऊर्जा प्रणाली असंतुलित होती है।ईश्वर ने मानव को स्वतंत्रता दी है, परंतु उसके परिणाम से मानव और प्रकृति दोनों प्रभावित होते हैं।मानव की जिम्मेदारी है कि वह अपनी स्वतंत्रता का उपयोग सतर्कता, विवेक और दायित्व के साथ करे।यदि मानव अज्ञान, लालच और तात्कालिक लाभ के लिए अपनी स्वतंत्रता का दुरुपयोग करता है, तो परिणामस्वरूप प्राकृतिक आपदाएँ और जैव विविधता का नुकसान होता है।

प्रकृति सहनशील है और उसने सदियों तक मानव और अन्य जीवों के अत्याचार सहन किए हैं।परंतु जब उसकी सहनशीलता की सीमा पार हो जाती है, तो वह प्रतिक्रिया देती है।सूखा, बाढ़, तूफान, भूकंप, जंगल की आग और जलवायु असंतुलन यही प्रकृति की प्रतिक्रिया हैं।यह प्रतिक्रिया केवल मानव के लिए चेतावनी नहीं है, बल्कि प्रकृति के संतुलन को बनाए रखने का तरीका भी है।मानव यदि जागरूक नहीं होगा, तो उसका विनाश अपरिहार्य है।

मनुष्य के भीतर ऊर्जा, प्रकृति की ऊर्जा और भौतिक ऊर्जा का घनिष्ठ संबंध है।जब मानव अपनी क्रियाओं के माध्यम से इस ऊर्जा तंत्र को बाधित करता है, तो वह न केवल पर्यावरण, बल्कि स्वयं के जीवन को प्रभावित करता है।इस दृष्टिकोण से मानव और प्रकृति का विनाश अलग नहीं है; यह एक ही ऊर्जा तंत्र में अलग-अलग रूपों में दिखाई देता है।यदि मानव अपनी बुद्धिमत्ता, ज्ञान और स्वतंत्रता का सही प्रयोग करता है, तो वह विनाश को रोक सकता है और पृथ्वी, जीव और जीवन के संतुलन को बनाए रख सकता है।

EGR 2025 के निष्कर्ष बताते हैं कि यदि उत्सर्जन इसी गति से बढ़ता रहा और मानव ने अपनी नीतियाँ नहीं बदलीं, तो वैश्विक तापमान असाधारण रूप से बढ़ेगा।वनों की कटाई, औद्योगिक गतिविधियाँ, भूमि उपयोग परिवर्तन और जीवाश्म ईंधन का अत्यधिक उपयोग पृथ्वी की ऊर्जा तंत्र को प्रभावित कर रहा है।यह चेतावनी केवल वैज्ञानिक दृष्टि से नहीं, बल्कि दार्शनिक और आध्यात्मिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है।मानव यदि समझ गया कि उसके प्रत्येक कर्म का प्रभाव पूरे जीवन तंत्र पर पड़ता है, तो वह सतत और जिम्मेदार जीवन जीने का प्रयास करेगा।

मनुष्य के लिए यह समय केवल चेतावनी का नहीं है, बल्कि **अंतिम जागृति का है।**यदि वह अपने कर्मों को नियंत्रित नहीं करेगा, तो प्रकृति की प्रतिक्रिया अनिवार्य रूप से विनाशकारी होगी।मनुष्य को चाहिए कि वह जीवन, ऊर्जा और पृथ्वी के संबंध को समझे।उसके प्रत्येक कर्म में संतुलन, जिम्मेदारी और भविष्य की सोच शामिल हो।हर व्यक्ति को यह सोचना होगा कि उसका कार्य प्रकृति को कितनी क्षति पहुँचाएगा।यदि हम यह समझ लें और अपने कार्यों में बदलाव करें, तो हम विनाश से बच सकते हैं और पुनरुत्थान का मार्ग खोल सकते हैं।

प्रकृति का संरक्षण केवल पर्यावरणीय कार्य नहीं है।यह मानव की नैतिक, दार्शनिक और आध्यात्मिक जिम्मेदारी भी है।यदि मानव प्रकृति का सम्मान करता है, तो वह जीवन की ऊर्जा का सम्मान करता है।यदि मानव अपनी स्वतंत्रता और बुद्धिमत्ता का सही उपयोग करता है, तो वह केवल अपने भविष्य को नहीं, बल्कि सभी जीवों और पृथ्वी के भविष्य को सुरक्षित करता है।यह मानवता के लिए अंतिम संदेश है कि अब समय आ गया है कि वह जागे, समझे और कार्य करे।

अंतिम अध्याय: मानव, प्रकृति और जीवन का अंतिम संदेश

मानव ने अपनी बुद्धिमत्ता और ज्ञान के माध्यम से पृथ्वी पर प्रभुत्व हासिल करने की कोशिश की है।वह सोचता है कि उसका विकास केवल आर्थिक, तकनीकी और भौतिक लाभ तक सीमित है।पर यह भूल जाता है कि उसका प्रत्येक कार्य पूरे ऊर्जा तंत्र और जीवन तंत्र को प्रभावित करता है।प्रकृति का विनाश केवल पर्यावरणीय समस्या नहीं है, बल्कि मानव और सभी जीवों के अस्तित्व का संकट है।Emissions Gap Report 2025 स्पष्ट करती है कि उत्सर्जन में लगातार वृद्धि, जंगलों की कटाई और औद्योगिकीकरण ने पृथ्वी की जैव विविधता को गंभीर रूप से प्रभावित किया है।यदि मानव अपने स्वार्थ, लालच और अज्ञानता के कारण संतुलन नहीं बनाएगा, तो प्रकृति की प्रतिक्रिया अपरिहार्य होगी।
मनुष्य और प्रकृति का संबंध केवल भौतिक नहीं है।प्रत्येक जीव, जल स्रोत, पौधा और ऊर्जा कण मानव से जुड़ा हुआ है।मनुष्य का कार्य यदि संतुलन में नहीं है, तो पूरे जीवन तंत्र असंतुलित होता है।ईश्वर ने मानव को स्वतंत्रता दी है, परंतु परिणाम अब मानव के कर्मों पर निर्भर है।मनुष्य की जिम्मेदारी है कि वह अपनी स्वतंत्रता का प्रयोग विवेक और दायित्व के साथ करे।यदि मानव अज्ञान, लालच और तात्कालिक लाभ के लिए स्वतंत्रता का दुरुपयोग करता है, तो प्राकृतिक आपदाएँ और जैव विविधता का नुकसान अपरिहार्य है।
प्रकृति सहनशील है पर उसकी सहनशीलता असीमित नहीं।वनों की कटाई, जलवायु परिवर्तन, जल और वायु प्रदूषण से उसका संतुलन बिगड़ता है।प्रकृति तांडव करती है जब उसकी सहनशीलता की सीमा पार हो जाती है।तांडव केवल चेतावनी नहीं है, यह संतुलन बनाए रखने का तरीका है।मनुष्य यदि जागरूक नहीं होगा, तो उसका विनाश अपरिहार्य है।मनुष्य के भीतर ऊर्जा, प्रकृति की ऊर्जा और भौतिक ऊर्जा का घनिष्ठ संबंध है।जब मानव अपनी क्रियाओं से इस ऊर्जा तंत्र को बाधित करता है, तो वह स्वयं और सभी जीवों को प्रभावित करता है।
EGR 2025 के निष्कर्ष बताते हैं कि यदि उत्सर्जन इसी गति से बढ़ता रहा और मानव ने नीतियाँ नहीं बदलीं, तो वैश्विक तापमान असाधारण रूप से बढ़ेगा।वनों की कटाई, औद्योगिक गतिविधियाँ, भूमि उपयोग परिवर्तन और जीवाश्म ईंधन का अत्यधिक उपयोग पृथ्वी की ऊर्जा तंत्र को प्रभावित कर रहा है।यह चेतावनी केवल वैज्ञानिक दृष्टि से नहीं, बल्कि दार्शनिक और आध्यात्मिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है।मानव यदि समझ गया कि उसके प्रत्येक कर्म का प्रभाव पूरे जीवन तंत्र पर पड़ता है, तो वह सतत और जिम्मेदार जीवन जीने का प्रयास करेगा।
मनुष्य के लिए यह समय केवल चेतावनी का नहीं है, बल्कि अंतिम जागृति का है।यदि वह अपने कर्मों को नियंत्रित नहीं करेगा, तो प्रकृति की प्रतिक्रिया अपरिहार्य रूप से विनाशकारी होगी।मनुष्य को चाहिए कि वह जीवन, ऊर्जा और पृथ्वी के संबंध को समझे।उसके प्रत्येक कर्म में संतुलन, जिम्मेदारी और भविष्य की सोच शामिल हो।हर व्यक्ति को यह सोचना होगा कि उसका कार्य प्रकृति को कितनी क्षति पहुँचाएगा।यदि हम यह समझ लें और अपने कार्यों में बदलाव करें, तो हम विनाश से बच सकते हैं और पुनरुत्थान का मार्ग खोल सकते हैं।
प्रकृति का संरक्षण केवल पर्यावरणीय कार्य नहीं है।यह मानव की नैतिक, दार्शनिक और आध्यात्मिक जिम्मेदारी भी है।यदि मानव प्रकृति का सम्मान करता है, तो वह जीवन की ऊर्जा का सम्मान करता है।यदि मानव अपनी स्वतंत्रता और बुद्धिमत्ता का सही उपयोग करता है, तो वह केवल अपने भविष्य को नहीं, बल्कि सभी जीवों और पृथ्वी के भविष्य को सुरक्षित करता है।यह मानवता के लिए अंतिम संदेश है कि अब समय आ गया है कि वह जागे, समझे और कार्य करे।
संदेश
मानव को समझना होगा कि प्रकृति का संरक्षण केवल पर्यावरणीय कार्य नहीं है, यह जीवन, ऊर्जा और चेतना का संरक्षण है।प्रकृति और मानव का संबंध एक ऊर्जा तंत्र में जुड़ा हुआ है।मनुष्य का प्रत्येक कार्य केवल मनुष्य तक सीमित नहीं, बल्कि पूरे जीवन तंत्र पर प्रभाव डालता है।यदि हम सोच-समझकर कार्य करें, तो विनाश से बच सकते हैं।यदि नहीं, तो प्रकृति की प्रतिक्रिया अपरिहार्य है।अब समय आ गया है कि मानव जागे, समझे कि उसके कर्मों का प्रभाव केवल स्वयं पर नहीं, बल्कि सभी जीवों और पृथ्वी पर पड़ता है।हमारे द्वारा किए गए प्रत्येक कार्य के परिणाम को ध्यान में रखते हुए हमें प्रकृति का सम्मान करना होगा।पेड़ लगाना, जल स्रोतों को संरक्षित करना, वायु और जल प्रदूषण को रोकना, प्राकृतिक संसाधनों का सतत उपयोग करना और जिम्मेदारी के साथ जीवन जीना अब हमारी प्राथमिक जिम्मेदारी है।यदि हम यह समझ लें और कार्य करें, तो हम न केवल अपने भविष्य को सुरक्षित करेंगे, बल्कि आने वाली पीढ़ियों और समस्त जीव जगत के लिए भी जीवन संभव बनाएंगे।
“यह अंश हमारी पुस्तक सर्व साम्य अद्वैत प्रकृति चेतनवाद दर्शन — भाग 1 : नव सवित तत्व प्रकृतिवाद से लिया गया है। इस पुस्तक का उद्देश्य प्रकृति की सर्वोच्च सत्ता की स्थापना करके विश्व में शांति स्थापित करना है, ताकि धरती पर रहने वाले सभी जीवों के जीवन में शांति बनी रहे, मनुष्य के जीवन में भी संतुलन और सौहार्द रहे, तथा सभी मनुष्य आपस में मिल-जुलकर अपने विकास का मार्ग प्रशस्त कर सकें। हमारी प्रकृति से प्रार्थना है कि धरती पर स्थित प्रत्येक जीव सुखी रहे, स्वस्थ रहे।” आप भी चाहते हैं विश्व में शांति तो हमसे संपर्क करें।

जीमेल-: cosmicadvaiticconsciousism@gmail.com

Continue.......


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