उदासी, निराशा, थकान और जीवन की अर्थहीनता


मैं संदीप सिंह सम्राट आप सभी को हाथ जोड़कर आप सभी के चरणों में प्रणाम करता हूं और आप सभी से कहता हूं प्रकृति नमामि जीवनम् मेरा आप सभी से निवेदन है कि धरती पर जीवन कायम रखने के लिए समस्त जीव जगत के लिए समस्त मानव जाति के लिए हम सबको मिलकर प्रकृति को बचाना होगा तभी हम सब अपना जीवन बचा सकते हैं और हमारे आने वाली पीढ़ियों का जीवन भी बचा सकते हैं धरती सभी जीवो का एकमात्र घर है इसमें मनुष्य भी शामिल है हम सभी मनुष्यों का पहला घर धरती है हमें अपने घर को बचाना है धरती की सभी जीव हमारे अपने हैं हमें सभी जीवों की सुरक्षा करनी है हम सभी मनुष्य प्रकृति की संतान है और हमारा कर्तव्य है कि हम अपनी मां प्रकृति की सुरक्षा करें और संरक्षण प्रदान करें धरती पर रहने वाले सभी जीव प्रकृति की संतान है और हमारे भाई बहन है हम मनुष्यों को उन सभी की सुरक्षा करनी है हम सबको मिलकर प्रकृति को बचाना है अपने घर को बचाना है अपने भाई बहनों को बचाए रखना है हम सब मिलकर अपने घर की रक्षा करें अपने घर को सुंदर बनाएं फिर से प्रकृति को खुशहाल करें हमारी मुहिम में शामिल हो “एक धरती एक भविष्य” में शामिल होकर अपना महत्वपूर्ण योगदान दें और ज्यादा से ज्यादा लोगों तक अपनी बात पहुंचाएं ताकि हम सभी मनुष्य मिलकर प्रकृति को फिर से पहले जैसा बना सकें हमारा नारा है एक धरती- एक भविष्य-एक मानवता. लिए हम सब मिलकर प्रयास करें अपने घर को सुरक्षित रखें आप सभी से हमारा निवेदन है कि इसे ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचने में हमारी मदद कीजिए हम आपसे कुछ नहीं मांग रहे हम बस इतना चाहते हैं कि हर व्यक्ति अपना कर्तव्य निभाई किसी ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचने में हमारी मदद कीजिए आप हमसे संपर्क कर सकते हैं


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धन्यवाद


डिप्रेशन (Depression)

डिप्रेशन वह अवस्था है जिसमें मनुष्य लंबे समय तक उदासी, निराशा, थकान और जीवन की अर्थहीनता का अनुभव करता है। इस अवस्था में व्यक्ति को लगता है कि जीवन में कुछ भी अच्छा नहीं है, सब कुछ व्यर्थ है और भविष्य अंधकारमय है। यह अवस्था मानव जीवन में तब उत्पन्न होती है जब मनुष्य को लगता है कि सब कुछ नष्ट हो चुका है—जीवन व्यर्थ है, प्रकृति व्यर्थ है और आगे बढ़ने का कोई अर्थ नहीं बचा। इसी भाव में मनुष्य कभी-कभी आत्महत्या तक कर लेता है या मानसिक रूप से अस्थिर हो जाता है। ऐसा क्यों होता है, जबकि मनुष्य धरती का सबसे बुद्धिमान प्राणी है, जिसके पास जीवन जीने के पर्याप्त साधन उपलब्ध हैं?

इसके दो प्रमुख कारण हो सकते हैं—पहला, मनुष्य की जीवनशैली, और दूसरा, अध्यात्म की कमी। यहाँ हम पहले कारण—जीवनशैली—पर विस्तृत चर्चा करते हैं।हमारा जीवन हमारा अपना है, यह बात हमें सदैव स्मरण रखनी चाहिए। किंतु साथ ही यह भी ध्यान रखना चाहिए कि यह जीवन हमने अपनी इच्छा से नहीं चुना है। हमें यह जीवन प्रकृति ने दिया है—एक उद्देश्य के तहत। प्रकृति ने प्रत्येक मानव को जीवन देकर उसके कंधों पर एक जिम्मेदारी रखी है—प्रकृति के संरक्षण की। जब तक हम अपने जीवन के इस मूल कर्तव्य का निर्वहन न कर दें, तब तक अपने शरीर को नष्ट करने का कोई अधिकार हमें नहीं है।जब भी आपके मन में निराशा उत्पन्न हो, जब आपको लगे कि जीवन समाप्त कर लेना चाहिए, तब एक बार शांत मन से विचार कीजिए—क्या आपने प्रकृति का कर्ज चुका दिया है? क्या आपने अपनी ज़िम्मेदारियाँ पूर्ण कर ली हैं? यदि आपको लगता है कि आपने प्रकृति को कुछ लौटाया ही नहीं है, तो आत्महत्या का विचार कैसे उचित हो सकता है? हम जो सांस लेते हैं, वह भी प्रकृति का कर्ज है। जब तक हम सांस लेते हैं, प्रकृति का कर्ज बढ़ता ही रहता है।

हम सभी का पहला कर्तव्य प्रकृति के प्रति है। हमने प्रकृति से बहुत कुछ लिया है—पर हम उसे कितना लौटाते हैं? हमारा जीवन हमारा निजी अधिकार नहीं, बल्कि प्रकृति के सभी जीवों का है। यह जीवन हमारे परिवार का है, उन सभी लोगों का है जो हमसे प्रेम करते हैं। जब यह जीवन हमारा है ही नहीं, तो इसे समाप्त करने का अधिकार हमें किसने दिया?हमारे जीवन की दिशा हम स्वयं तय करते हैं, प्रकृति का काम केवल जीवन देना और उसे चलाने के लिए आवश्यक ज्ञान प्रदान करना है। जीवन का मूल उद्देश्य धरती पर जीवन को बनाए रखना है—इसके अतिरिक्त प्रकृति मनुष्य से कुछ नहीं चाहती।हमारे जीवन के दुख, कष्ट और निराशा का कारण जीवन नहीं, बल्कि हम स्वयं हैं। जीवन तो सृजन का साधन है, संघर्ष का प्रतीक है। जब धरती पर मनुष्य नहीं था, तब भी जीवन था; जब हम नहीं रहेंगे, तब भी जीवन रहेगा। लेकिन प्रकृति यह अवश्य याद रखेगी कि उसने किसी मानव को जीवन दिया और उस मानव ने प्रकृति को क्या लौटाया।

मनुष्य जीवन में निराशा के अनेकों कारण हो सकते हैं, परंतु इन सबका मूल कारण है—स्वार्थ और लालच। हम अधिक संसाधन चाहते हैं, अधिक धन चाहते हैं, अधिक सुविधाएँ चाहते हैं। और जब हमारी इच्छाएं पूरी नहीं होतीं, तब मन में निराशा भर जाती है।

हमें दूसरों को देखकर अपना जीवन नहीं जीना चाहिए। हमें अपना जीवन स्वयं के लिए, अपने परिवार के लिए, प्रकृति के लिए और उन सभी के लिए जीना चाहिए जो हमसे प्रेम करते हैं। दूसरों को दिखाने के लिए जीवन जीने से ही जीवन में निराशा जन्म लेती है। जीवन में संतुष्टि ही वास्तविक सुख है। आपके पास जो संसाधन हैं, वे जीवन के लिए पर्याप्त हैं, क्योंकि संसाधन जीवन को नहीं चलाते—जीवन संसाधनों को चलाता है।

जब भी कभी आपको लगे कि जीवन समाप्त हो गया है, तब बाहर निकलकर प्रकृति को देखिए। पेड़-पौधे, जानवर, पक्षी—क्या इनके पास आपके जैसे संसाधन हैं? क्या इनके पास सुरक्षा, घर, भोजन सबकुछ है? फिर भी वे जीते हैं, संघर्ष करते हैं, और प्रसन्न रहते हैं। संघर्ष ही प्रकृति का दूसरा नाम है। जिस दिन आप संघर्ष करना छोड़ दें, समझ लीजिए आपकी आत्मा मर चुकी है।यदि आत्महत्या का विचार आए, तो प्रकृति को अंतिम बार देखने का भाव रखकर उसे समझने की कोशिश कीजिए। यदि आपने एक बार प्रकृति को समझ लिया, तो आपके भीतर जीवन के प्रति नई ऊर्जा का संचार होगा, और आत्महत्या का विचार कभी मन में नहीं आएगा।यदि आपको लगता है कि आपके संसाधन कम हैं, तो प्रयास कीजिए, खर्च कम कीजिए, मेहनत बढ़ाइए। प्रकृति के साथ अपना संबंध मजबूत कीजिए। मनुष्य कभी अकेला नहीं होता—जब आप सांस लेते हैं, तब प्रकृति आपके साथ होती है। मित्र न हों, परिवार न हो, फिर भी प्रकृति आपका साथ नहीं छोड़ती।यदि आप बिल्कुल अकेला महसूस कर रहे हैं, तो सबसे सरल उपाय है—एक पौधे या एक पेड़ को अपना मित्र बना लीजिए। उसे रोज़ पानी दीजिए, उससे बातें कीजिए। दस दिन बाद आप स्वयं अनुभव करेंगे कि वह पौधा आपको उत्तर देता है। आप उसके साथ भावनात्मक रूप से जुड़ जाएंगे। वैज्ञानिक भी सिद्ध कर चुके हैं कि पौधे मनुष्य की ऊर्जा को महसूस करते हैं।पेड़-पौधों और पशु-पक्षियों से प्रेम कीजिए। वे आपको जितना प्रेम देंगे, उसकी तुलना मनुष्य के प्रेम से नहीं की जा सकती। प्रकृति से जुड़ाव मनुष्य की सभी समस्याओं का एकमात्र समाधान है।

यदि आपके जीवन में कष्ट हैं, परेशानियाँ हैं, और आपको कोई सुनने वाला नहीं है, तो हमें बताइए। हम आपके दुखों को समझकर समाधान देने का प्रयास करेंगे। इस संदेश को अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचाइए ताकि कोई भी व्यक्ति मानसिक तनाव में आत्महत्या न करे।

आइए, हम सब मिलकर प्रकृति का संरक्षण करें, मानवता को बचाएँ, और पृथ्वी को एक सुंदर, शांतिपूर्ण और जीवनदायी स्थान बनाएं। आने वाले समय में हम अध्यात्म की कमी पर चर्चा करेंगे। हमारे साथ जुड़े रहिए


जीवन अत्यंत मूल्यवान है—क्योंकि यह आपका नहीं, प्रकृति का उपहार है।

प्रकृति ने आपको इसलिए जन्म नहीं दिया कि आप हार मानकर स्वयं को समाप्त कर दें;

बल्कि इसलिए दिया है कि आप संघर्ष करते हुए, सीखते हुए, बढ़ते हुए,

इस दुनिया को पहले से बेहतर बनाकर जाएं।


याद रखिए—अंधकार कभी स्थायी नहीं होता।

जैसे ही मन का सूरज उगता है, सारी छायाएं मिट जाती हैं।


आप अकेले नहीं हैं—आपके साथ प्रकृति है, हर पेड़ है, हर पक्षी है, हर हवा का झोंका है।

वे सब आपको पुकार रहे हैं—

“उठो, तुम कमजोर नहीं। तुम प्रकृति की संतान हो।”

अपने जीवन को एक नए अवसर की तरह स्वीकार कीजिए।

हर सुबह आपके लिए एक नया जीवन लेकर आती है।

बस एक कदम उठाइए—और प्रकृति की ओर बढ़ जाइए।

वह आपको गले लगाएगी, आपकी पीड़ा कम करेगी,

और आपको फिर से जीने की शक्ति देगी।


जीवन आपका उपहार है —

उसे प्रेम से निभाइए,

संघर्ष से सजाइए,

और प्रकृति को वापस लौटाइए।

प्रकृति नमामि जीवनम्।


यह अंश हमारी पुस्तक सर्व साम्य अद्वैत प्रकृति चेतनवाद दर्शन — भाग 1 : नव सवित तत्व प्रकृतिवाद से लिया गया है। इस पुस्तक का उद्देश्य प्रकृति की सर्वोच्च सत्ता की स्थापना करके विश्व में शांति स्थापित करना है, ताकि धरती पर रहने वाले सभी जीवों के जीवन में शांति बनी रहे, मनुष्य के जीवन में भी संतुलन और सौहार्द रहे, तथा सभी मनुष्य आपस में मिल-जुलकर अपने विकास का मार्ग प्रशस्त कर सकें। हमारी प्रकृति से प्रार्थना है कि धरती पर स्थित प्रत्येक जीव सुखी रहे, स्वस्थ रहे।” आप भी चाहते हैं विश्व में शांति तो हमसे संपर्क करें।


जीमेल-: cosmicadvaiticconsciousism@gmail.com


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