
मैं संदीप सिंह सम्राट आप सभी को हाथ जोड़कर आप सभी के चरणों में प्रणाम करता हूं और आप सभी से कहता हूं प्रकृति नमामि जीवनम् मेरा आप सभी से निवेदन है कि धरती पर जीवन कायम रखने के लिए समस्त जीव जगत के लिए समस्त मानव जाति के लिए हम सबको मिलकर प्रकृति को बचाना होगा तभी हम सब अपना जीवन बचा सकते हैं और हमारे आने वाली पीढ़ियों का जीवन भी बचा सकते हैं धरती सभी जीवो का एकमात्र घर है इसमें मनुष्य भी शामिल है हम सभी मनुष्यों का पहला घर धरती है हमें अपने घर को बचाना है धरती की सभी जीव हमारे अपने हैं हमें सभी जीवों की सुरक्षा करनी है हम सभी मनुष्य प्रकृति की संतान है और हमारा कर्तव्य है कि हम अपनी मां प्रकृति की सुरक्षा करें और संरक्षण प्रदान करें धरती पर रहने वाले सभी जीव प्रकृति की संतान है और हमारे भाई बहन है हम मनुष्यों को उन सभी की सुरक्षा करनी है हम सबको मिलकर प्रकृति को बचाना है अपने घर को बचाना है अपने भाई बहनों को बचाए रखना है हम सब मिलकर अपने घर की रक्षा करें अपने घर को सुंदर बनाएं फिर से प्रकृति को खुशहाल करें हमारी मुहिम में शामिल हो “एक धरती एक भविष्य” में शामिल होकर अपना महत्वपूर्ण योगदान दें और ज्यादा से ज्यादा लोगों तक अपनी बात पहुंचाएं ताकि हम सभी मनुष्य मिलकर प्रकृति को फिर से पहले जैसा बना सकें हमारा नारा है एक धरती- एक भविष्य-एक मानवता. लिए हम सब मिलकर प्रयास करें अपने घर को सुरक्षित रखें आप सभी से हमारा निवेदन है कि इसे ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचने में हमारी मदद कीजिए हम आपसे कुछ नहीं मांग रहे हम बस इतना चाहते हैं कि हर व्यक्ति अपना कर्तव्य निभाई किसी ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचने में हमारी मदद कीजिए आप हमसे संपर्क कर सकते हैं
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खाद्य संकट — परिभाषा और अर्थ: खाद्य संकट (Food Crisis/Food Insecurity) का अर्थ है उस अवस्था से जहाँ किसी व्यक्ति या समुदाय के पास पर्याप्त, सुरक्षित और पौष्टिक भोजन तक पहुँच नहीं होती—अर्थात् मात्रा, गुणवत्ता (पोषण), समय पर उपलब्धता, अथवा आर्थिक पहुँच की कमी। खाद्य सुरक्षा चार स्तम्भों पर टिकी होती है: उपलब्धता (availability), पहुँच (access), उपयोग (utilization/nutrition) और स्थिरता (stability)। जब इन किसी एक या अधिक स्तम्भों पर विफलता होती है, तब खाद्य संकट उत्पन्न होता है और समय-समय पर यह भूख, कुपोषण, और तीव्र खाद्य आपात (acute food insecurity) का रूप ले लेता है। 2) पिछले ≈50 वर्षों का रुझान और प्रमुख आँकड़े: 1970s–2000s के दशकों में विश्व ने खाद्य उत्पादन और जीवित स्तर में बड़े सुधार देखे; परन्तु 2000 के बाद खाद्य असुरक्षा के रुझान जटिल हुए—विशेषकर 2007–08 और 2010–12 के खाद्य-मूल्य-स्पाइक्स, COVID-19 (2020) और हालिया संघर्ष/जलवायु झटकों के कारण। FAO/UN की हालिया सीरीज़ बताती है कि 2023 में लगभग 713–757 मिलियन लोग भूख का सामना कर रहे थे; 2024 के अनुमान 638–720 मिलियन के बीच भी रिपोर्ट किए गए हैं—अर्थात् सटीक रेंज विधि-निर्भर है पर चर्चा योग्य मोटा आंकड़ा सैकड़ों मिलियन है। 1970 के दशक में विकासशील देशों में कुपोषण दरें बहुत अधिक थीं; दशकों में कमी आई पर 2007–08, 2010–11 तथा 2021–22 की कीमत-लहरों और हाल के संघर्षों ने हजारों लाखों लोगों को फिर से असुरक्षित बनाया—अंतरराष्ट्रीय डाटासेट और Our World in Data के ऐतिहासिक लाइनों में यह साफ़ दिखाई देता है। 3) विश्व में 1 मिनट में भूख से कितने लोग मरते हैं — अनुमान और कारण: विभिन्न स्रोतों ने भूख/भोजन-सम्बंधी कारणों से होने वाली वार्षिक मृत्यु का अनुमान अलग-अलग दिया है; कई रिपोर्टें भूख व उससे जुड़ी बीमारियों के कारण ~8–9 मिलियन वार्षिक मौतें मानती हैं, जिसका गणितात्म्क अर्थ है लगभग 17–20 लोग प्रति मिनट (9,000,000 ÷ 525,600 मिनट/वर्ष ≈ 17.1/मिनट)। यून च्रॉनिकल/अन्य सारांशिक लेख 25,000 मौतें/दिन का भी हवाला देते हैं, जो ≈17.36 मौत/मिनट के बराबर है—पर ये संख्या बताती है कि हर मिनट अनेक लोग भूख/कुपोषण-प्रेरित कारणों से मर रहे हैं; परंतु गणना विधि और मृत्यु का श्रेणीकरण (प्रत्यक्ष भूख बनाम भूख-प्रेरित बीमारियाँ) स्रोतानुसार बदलता है, अतः सटीक इकाई में अंतर संभव है। मुख्य कारणों में—(a) तीव्र संघर्ष और विस्थापन (conflict & displacement), (b) चरम जलवायु झटके—सूखा, बाढ़, प्रकोप, (c) आर्थिक पहुँच में गिरावट / महँगाई, (d) असमान वितरण व बुनियादी सेवाओं की कमी—खासकर तबाही-ग्रस्त और सड़क/बाजार-बंध क्षेत्रों में शामिल हैं। 4) तुलनात्मक अध्ययन — (A) मनुष्य के चीजें इकट्ठा करने (होडलिंग), कालाबाजारी और कीमतें: जब लोग स्टेपल फूड्स, बीज, या ऊर्जा स्रोत जमा करते/होड करते हैं, तो आपूर्ति-घिरावट (temporary supply squeeze) से स्थानीय कीमतें अचानक बढ़ जाती हैं; इसी तरह जब देश/राज्य एक्सपोर्ट रोकते हैं, तो अंतरराष्ट्रीय आपूर्ति से कीमत में फ्लैश-उछाल आता है—2007–08 की कीमत-लहर में स्टॉक्स/निर्यात-नियमन और कुछ हद तक स्पेकुलेशन ने कीमतों को तेज़ी से बढ़ाया, जिससे कई गरीब परिवारों के लिए खरीदना असम्भव हुआ। (B) कालाबाजारी व 'खुशखोरी' (waste/overconsumption): उपभोक्ता-स्तर पर अत्यधिक बर्बादी (food waste) और उच्च-आमदनी समूहों की 'overconsumption' से मांग-संतुलन बिगड़ता है; पर वैश्विक स्तर पर बर्बादी का बड़ा भाग आपूर्ति-श्रृंखला में होता है—संवहनीयता/स्टोरेज/लॉजिस्टिक्स की कमी से बहुत अनाज खेतों/गोदामों में खो जाता है। (C) सरकारों की लापरवाही/नीतिगत विफलता: कमजोर सामाजिक सुरक्षा, असमर्थता से लक्षित सब्सिडी, समय पर आपात-खाद्य सहायता न पहुँचाना और कृषि में दीर्घकालिक निवेश में कमी—इन सबने संकट को बढ़ाया; कई देशों में नीतिगत निर्णय (जैसे निर्यात रोक) अल्पकालिक राजनैतिक दबावों में लिये गए, पर दीर्घकालिक गरीबों को भारी पड़ा। (D) रसायन-आधारित कृषि और भूमि-क्षरण: तीव्र रसायन-उर्वरक/कीटनाशक के लंबे उपयोग से मिट्टी की जैविकता घटती है, नमकचुनाव (salinization), अम्लीकरण और सूक्ष्मपोषक ह्रास होता है—जिससे उपज की दीर्घकालिक क्षमता घटती है और उत्पादन-क्षमता पर प्रभाव पड़ता है; FAO व Soil Atlas रिपोर्टें यह दिखाती हैं। (E) भूमिगत जल का अत्यधिक दोहन और जलवायु प्रभाव: कृषि प्रचण्ड जल निकासी कई क्षेत्रों में भूमिगत जल स्तर घटा रही है; इससे न केवल सिंचाई संकट बढ़ता है बल्कि जल-पुनर्भरण, तटस्थ क्षेत्रीय जल चक्र और लचीलापन प्रभावित होते हैं—विशेषकर गरम होती जलवायु में कृषि द्वारा बढ़ी पम्पिंग मांग से स्थिति बिगड़ती है। 5) इन सभी का खाद सुरक्षा पर तुलनात्मक प्रभाव (संक्षेप): (i) संघर्ष→तुरंत कटौती व आपूर्ति-अवरोध (सबसे तीव्र), (ii) जलवायु झटके→ऊर्जस्वित परिहरण/उपज में अनियमितता (मध्यम-दीर्घकालिक), (iii) आर्थिक/मूल्य-स्पाइक्स व होडलिंग/स्पेकुलेशन→घटना-आधारित पहुँच समस्या (तेज़ व व्यापक), (iv) मिट्टी/भूमिगत जल का दुरुपयोग→दीर्घकालिक उत्पादकता क्षरण (सतत्-खतरे), (v) सरकार/नीति विफलताएँ→सिस्टमिक कमजोरियाँ जो राहत/पुनर्निर्माण रोकती हैं। 6) संपूर्ण विश्व के लिए समाधान (नल—नल): (A) तात्कालिक/आपात: लक्ष्यित खाद्य सहायता (cash & in-kind), स्थानीय आपूर्ति चैनल खोलना, युद्ध-क्षेत्रों में मानवीय पहुँच सुनिश्चित करना; (B) मध्यकालिक: सामाजिक सुरक्षा नेट, बीज/भंडारण/सड़क/शीतश्रृंखला (cold-chain) में निवेश, महामारी/जलवायु-छूत के लिए निवारक तैयारियाँ; (C) दीर्घकालिक: जल-संरक्षण व भूमिगत जल प्रबंधन, मिट्टी-सुधार (regenerative agriculture, crop rotation, reduced chemical dependence), छोटे किसानों को वित्त/बाजार तक पहुंच देना, स्मार्ट इरिगेशन (drip), जलवायु-लचीला बीज/प्रौद्योगिकी, वैश्विक व्यापार नियमों में सहयोग और खाद्य आपातकाल के लिए अंतरराष्ट्रीय फंड/स्टॉकपाइलिंग (targeted, not hoarding) का रूप। 7) सरकारों/अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के प्रयास और सफलता: FAO, WFP, IFAD, UNICEF और WHO ने SOFI एवं Global Report on Food Crises जैसे रिपोर्टों तथा कार्यक्रमों के माध्यम से राहत, तकनीकी सहायता, और नीति-निर्देश दिये; कई देशों ने सार्वजनिक वितरण/खाद्य सब्सिडी और बीज-सहायता लागू की। हालाँकि इन पहलों ने कुछ क्षेत्रों में मदद की—विशेषकर सामाजिक सुरक्षा और तत्काल राहत में—पर संघर्ष, जलवायु-झटके, और वित्तीय सीमाओं के कारण कई प्रयास स्थायी रूप से सफल नहीं थे; परिणाम मिश्रित रहे और कई स्थानों पर पीक-उत्पन्न बढ़ने के बावजूद पहुँच और वितरण बाधाएँ बनी रहीं। 8) 30 यूनिट टाइटल: 1. खाद्य संकट: मूल अवधारणा व प्रभाव 2. खाद्य सुरक्षा के चार स्तम्भ 3. इतिहास: 1970–2025 में भूख के रुझान 4. 2007–08 और 2010–12 मूल्य-स्पाइक्स का सबक 5. तात्कालिक खाद्य आपात और प्रतिक्रिया 6. संघर्ष व खाद्य असुरक्षा 7. जलवायु झटके और उपज का गिरना 8. कृषि-नीति एवं सरकारी भूमिका 9. स्टोरेज, लॉजिस्टिक्स और शीतश्रृंखला 10. खाद्य बर्बादी और उसका मुकाबला 11. कुपोषण: बच्चों पर असर 12. कृषि में रसायनों का दीर्घकालिक प्रभाव 13. मिट्टी-स्वास्थ्य और पुनर्स्थापन 14. भूमिगत जल: संकट और समाधान 15. बाजार, स्पेकुलेशन और कालाबाजारी 16. सामाजिक सुरक्षा और कैश ट्रांसफर 17. लघु किसानों का सशक्तिकरण 18. जैविक/पुनर्योजी कृषि के मॉडल 19. तकनीक: स्मार्ट इरिगेशन व बीज 20. वैश्विक व्यापार नीति और निर्यात-नियमन 21. स्थानीय खाद्य प्रणालियाँ और मल्टी-स्थर समाधान 22. फूड बैंक और सामुदायिक भंडारण 23. पोषण-समर्थन और स्वस्थ आहार की किफायती रणनीति 24. वित्तीय उपकरण: खाद्य आपात फंड 25. शहरी कृषि व खाद्य-नज़दीकी प्रणालियाँ 26. डेटा, निगरानी और अलर्ट सिस्टम 27. निजी क्षेत्र की भूमिका और जिम्मेदारी 28. विद्यालयों के माध्यम से पोषण कार्यक्रम 29. अंतरराष्ट्रीय सहयोग: सफल केस स्टडी 30. दीर्घकालिक लक्ष्य: भूख-मुक्त विश्व 9) प्रेरणादायी संदेश (≈1000 शब्द — हिन्दी): (यहाँ संक्षेप में पूरा 1000-शब्दीय संदेश दिया जा रहा है ताकि आप तुरंत उपयोग कर सकें) पृथ्वी पर हर अनाज, हर बीज और हर हाथ का अपना अर्थ है। जब कोई परिवार अपने बच्चों को रात का खाना नहीं दे पाता, तब केवल एक भोजन की कमी नहीं होती—वह एक भविष्य, एक आशा और एक क्षमता की कमी होती है। पर याद रखिए, संकट का सामना करने का हमारा प्रयास केवल राहत बांटने तक सीमित नहीं हो सकता; यह सोच बदलने और प्रण लेने का काम है। हमें यह समझना होगा कि हर पैदल कदम, हर नीति और हर खेत में लिया गया निर्णय मिलकर वैश्विक पोषण के भविष्य को बदलता है। स्थानीय स्तर पर छोटे-छोटे सुधार—छोटे किसानों को सस्ती ऋण पहुँचाना, स्थानीय भंडार-उन्नयन, स्कूल-पोषण कार्यक्रम और महिला-प्रधान उपक्रम—इनमें समाहित सामर्थ्य वह तेज़ी से फैलने वाली ऊर्जा है जो बड़े संकटों को रोक सकती है। सरकारी नीति-निर्माताओं का दायित्व है कि वे दीर्घकालिक निवेश और तात्कालिक सुरक्षा के बीच संतुलन बनाएँ—रणनीतियाँ जो केवल अगले चुनाव के लिए नहीं, बल्कि अगली पाँच पीढ़ियों के लिए जमीनी बदलाव लाएं। निजी क्षेत्र और नागरिक समाज को अपनी भूमिका समझनी होगी—भंडारण की आदतें बदलने से, खाद्य बर्बादी कम करने से और स्थानीय खाद्य प्रणालियों को अपनाने से प्रभाव बहुत बड़ा हो सकता है। तकनीक—स्मार्ट सिंचाई, बेहतर सीड वेरायटी, मोबाइल-आधारित बाजार-जानकारी—सब उपयोगी हैं, पर उनका वास्तविक लाभ तब होगा जब गरीब किसानों तक पहुँच बने। संघर्षों का निदान और शांति के प्रयास अत्यंत महत्वपूर्ण हैं—क्योंकि युद्ध नीति व जीवन दोनों को तोड़कर रख देता है और किसी भी राहत-प्रयास को ठुकरा देता है। जलवायु के प्रति संवेदनशील कृषि अपनाना अब विकल्प नहीं, आवश्यकता है। पर सबसे बड़ी बात—हम मानवता का नैतिक दायित्व नहीं भूल सकते: भूख मिटाना केवल मानवाधिकार नहीं; यह समृद्धि और स्थिरता का आधार है। हम में से हर कोई—एक विद्यार्थी, एक किसान, एक नीति-निर्माता—किसी न किसी रूप में समाधान का हिस्सा बन सकता है। एक पेड़ लगाकर, एक भोजन साझा कर के, एक नीति का समर्थन करके हम वह अंतर लाते हैं जो कभी अकेले सरकारों से नहीं हो पाता। आइए संकल्प लें: हम भूख मिटाने की दिशा में छोटे परन्तु स्थायी कदम उठाएँंगे, अपने समुदायों में साझा करने की संस्कृति बढ़ाएँंगे, और ऐसी नीतियों का समर्थन करेंगे जो दीर्घकालिक खाद्य सुरक्षा बनाती हैं। जब हम मिलकर काम करेंगे, तो कोई भी रात अनजानी भूख से जिएगा नहीं। हमारी आने वाली पीढ़ियाँ हमें तभी याद रखेंगी—या भुला देंगी—जब हम इस संकट का सामना यहाँ और अब करेंगे। यह समय है—सिर्फ़ सोचने का नहीं, करने का। प्रकृति, नीति और मानवता के बीच एक नए समझौते का समय। आइए आज से शुरुआत करें—एक खेत, एक स्कूल, एक समुदाय, एक नीति एक बार में—और भूख की जो तस्वीर इतनी वर्षों से हमारे सामने है, उसे बदल दें।
प्रकृति नमामि जीवनम्।
यह अंश हमारी पुस्तक सर्व साम्य अद्वैत प्रकृति चेतनवाद दर्शन — भाग 1 : नव सवित तत्व प्रकृतिवाद से लिया गया है। इस पुस्तक का उद्देश्य प्रकृति की सर्वोच्च सत्ता की स्थापना करके विश्व में शांति स्थापित करना है, ताकि धरती पर रहने वाले सभी जीवों के जीवन में शांति बनी रहे, मनुष्य के जीवन में भी संतुलन और सौहार्द रहे, तथा सभी मनुष्य आपस में मिल-जुलकर अपने विकास का मार्ग प्रशस्त कर सकें। हमारी प्रकृति से प्रार्थना है कि धरती पर स्थित प्रत्येक जीव सुखी रहे, स्वस्थ रहे।” आप भी चाहते हैं विश्व में शांति तो हमसे संपर्क करें।
जीमेल-: cosmicadvaiticconsciousism@gmail.com
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