तापमान बढ़ना (Global Warming)

 

मैं संदीप सिंह सम्राट आप सभी को हाथ जोड़कर आप सभी के चरणों में प्रणाम करता हूं और आप सभी से कहता हूं प्रकृति नमामि जीवनम् मेरा आप सभी से निवेदन है कि धरती पर जीवन कायम रखने के लिए समस्त जीव जगत के लिए समस्त मानव जाति के लिए हम सबको मिलकर प्रकृति को बचाना होगा तभी हम सब अपना जीवन बचा सकते हैं और हमारे आने वाली पीढ़ियों का जीवन भी बचा सकते हैं धरती सभी जीवो का एकमात्र घर है इसमें मनुष्य भी शामिल है हम सभी मनुष्यों का पहला घर धरती है हमें अपने घर को बचाना है धरती की सभी जीव हमारे अपने हैं हमें सभी जीवों की सुरक्षा करनी है हम सभी मनुष्य प्रकृति की संतान है और हमारा कर्तव्य है कि हम अपनी मां प्रकृति की सुरक्षा करें और संरक्षण प्रदान करें धरती पर रहने वाले सभी जीव प्रकृति की संतान है और हमारे भाई बहन है हम मनुष्यों को उन सभी की सुरक्षा करनी है हम सबको मिलकर प्रकृति को बचाना है अपने घर को बचाना है अपने भाई बहनों को बचाए रखना है हम सब मिलकर अपने घर की रक्षा करें अपने घर को सुंदर बनाएं फिर से प्रकृति को खुशहाल करें हमारी मुहिम में शामिल हो “एक धरती एक भविष्य” में शामिल होकर अपना महत्वपूर्ण योगदान दें और ज्यादा से ज्यादा लोगों तक अपनी बात पहुंचाएं ताकि हम सभी मनुष्य मिलकर प्रकृति को फिर से पहले जैसा बना सकें हमारा नारा है एक धरती- एक भविष्य-एक मानवता. लिए हम सब मिलकर प्रयास करें अपने घर को सुरक्षित रखें आप सभी से हमारा निवेदन है कि इसे ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचने में हमारी मदद कीजिए हम आपसे कुछ नहीं मांग रहे हम बस इतना चाहते हैं कि हर व्यक्ति अपना कर्तव्य निभाई किसी ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचने में हमारी मदद कीजिए आप हमसे संपर्क कर सकते हैं

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धन्यवाद


मानव द्वारा प्रकृति को पहुँचाया गया नुकसान और उसके परिणाम

1. तापमान बढ़ना (Global Warming)

धरती का औसत तापमान तेजी से बढ़ रहा है, जिसे वैज्ञानिक “ग्लोबल वार्मिंग” कहते हैं। यह मुख्यतः वातावरण में ग्रीनहाउस गैसों—कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड, क्लोरोफ्लोरोकार्बन—की अत्यधिक वृद्धि के कारण हो रहा है। यह गैसें पृथ्वी की सतह से उठने वाली ऊष्मा को रोक देती हैं जिससे वातावरण गर्म हो जाता है। मनुष्य द्वारा जीवाश्म ईंधन (कोयला, पेट्रोल, डीज़ल, गैस) का अत्यधिक उपयोग, उद्योगों व फैक्ट्रियों का धुआँ, वनों की अंधाधुंध कटाई, शहरों में कंक्रीट का बढ़ना और ऊर्जा का अनियंत्रित उपभोग तापमान वृद्धि के सबसे बड़े कारण हैं। पृथ्वी का तापमान बढ़ने से मौसम चक्र अस्तव्यस्त हो रहा है, असामान्य गर्मी, हीटवेव और जंगलों में आग लगने की घटनाएँ बढ़ रही हैं। कृषि उत्पादन घट रहा है, पानी के स्रोत सूख रहे हैं और मानव स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ रहा है।

2. हिमखंड पिघलना (Melting of Glaciers)

धरती का बढ़ता तापमान सीधे तौर पर हिमालय, आर्कटिक और अंटार्कटिका की बर्फ को तेज़ी से पिघला रहा है। वैज्ञानिक रिपोर्टों के अनुसार पिछले 30–40 वर्षों में ग्लेशियरों का 30–40% हिस्सा नष्ट हो चुका है। यह पिघलती बर्फ समुद्र के जलस्तर को बढ़ा रही है और विश्व के अनेक तटीय शहरों को डूबने के खतरे में डाल रही है। ग्लेशियरों के पिघलने से नदियों का स्वाभाविक जलप्रवाह बदल रहा है जिससे कहीं बाढ़ और कहीं पानी का अभाव (सूखा) बढ़ रहा है। पर्वतीय जीवन, वन्यजीव, पर्वतीय कृषि, प्राकृतिक झीलें, सब खतरे में आ चुकी हैं।

3. समुद्र का स्तर बढ़ना (Sea Level Rise)

समुद्र का स्तर दो कारणों से बढ़ रहा है—एक, बर्फ पिघलने से पानी की मात्रा बढ़ रही है; दूसरा, गरम होने पर समुद्री पानी का फैलाव (thermal expansion) हो रहा है। इसका प्रभाव सबसे पहले तटीय देशों—बांग्लादेश, भारत, श्रीलंका, इंडोनेशिया, जापान, मालदीव, फिलीपींस—पर पड़ रहा है। अनेक वैज्ञानिक अनुमान बताते हैं कि वर्ष 2100 तक समुद्र का स्तर 1 मीटर तक बढ़ सकता है जिससे लाखों लोगों को अपने घर-गाँव छोड़ने पड़ेंगे। तटीय कृषि भूमि खारे पानी से नष्ट हो रही है, मीठा पानी प्रदूषित हो रहा है और समुद्री तूफान अधिक खतरनाक होते जा रहे हैं।

4. चरम मौसम (Flood, Drought, Cyclone, Storm)

जलवायु परिवर्तन ने मौसम के प्राकृतिक संतुलन को असंतुलित कर दिया है।

 • जहाँ बारिश होनी चाहिए, वहाँ सूखा पड़ रहा है

 • जहाँ कम वर्षा होनी चाहिए, वहाँ लगातार बाढ़ आ रही है

 • गर्म क्षेत्रों में भीषण हीटवेव

 • ठंडे क्षेत्रों में असामान्य ठंड

 • समुद्री तूफानों की तीव्रता में कई गुना वृद्धि

 इन चरम घटनाओं का सीधा नुकसान—जीवन की हानि, संपत्ति का नुकसान, कृषि का नष्ट होना, पशुओं की मृत्यु, पेड़ों का गिरना और समाज की आर्थिक-सामाजिक व्यवस्था का बिगड़ना है

मनुष्य किस प्रकार प्रकृति को नुकसान पहुँचा रहा है

उद्योगों और वाहनों से अत्यधिक प्रदूषण

जंगलों की कटाई, जिससे कार्बन अवशोषण कम होता है

रसायनयुक्त कृषि, जो मिट्टी को नष्ट कर देती है

प्लास्टिक और कचरे का अत्यधिक प्रयोग

भूमिगत जल का अनियंत्रित दोहन

अत्यधिक खनन, खुदाई और निर्माण

ऊर्जा का अनावश्यक उपभोग

नदियों, झीलों और तालाबों में कचरा डालना

समुद्र में रासायनिक कचरा फैलाना

पशु-पक्षियों के आवास नष्ट करना

 इन सभी कार्यों ने धरती के संतुलन को गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त कर दिया है।

मानव जीवन पर प्रत्यक्ष प्रभाव

गर्मी, हीटवेव और स्वास्थ्य समस्याएँ

फसलें नष्ट होकर खाद्य संकट

पानी का अभाव

बीमारी फैलाने वाले कीट-मच्छरों में वृद्धि

प्राकृतिक आपदाओं में जान-माल का नुकसान

गरीबों पर सबसे अधिक प्रभाव—रोज़गार, घर, भोजन सब पर विपरीत असर

लाखों लोगों का जलवायु-शरणार्थी बन जाना

मानव जीवन पर अप्रत्यक्ष प्रभाव

महँगाई बढ़ना

खाद्य की कमी से संघर्ष और अशांति

समुद्री जीवन को हानि—मछुआरों की आजीविका प्रभावित

पर्यटन उद्योग का नुकसान

मिट्टी की गुणवत्ता घटने से कृषि पर स्थायी प्रभाव

आर्थिक विकास की गति धीमी

पूरी सभ्यता के भविष्य पर खतरा

धरती हमारी जन्मभूमि भी है और भविष्य की एकमात्र आशा भी। प्रकृति ने हमें जीवन दिया, हवा दी, पानी दिया, भोजन दिया और हर वह चीज़ दी जो मनुष्य को सभ्यता तक पहुँचाने के लिए आवश्यक थी। परंतु आज हम एक ऐसे दौर में खड़े हैं जहाँ पृथ्वी कई घावों से कराह रही है। तापमान लगातार बढ़ रहा है, हिमखंड पिघल रहे हैं, समुद्र का स्तर तेज़ी से ऊपर आ रहा है और मौसम का स्वभाव पूरी तरह बदल चुका है। यह सब अपने आप नहीं हो रहा, बल्कि मनुष्य की गतिविधियों का परिणाम है। यह वह समय है जब हमें रुककर सोचना होगा—क्या हम अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए एक सुरक्षित धरती छोड़कर जा रहे हैं या राख और विनाश से भरी विरासत? धरती अपने आप को बचाने की कोशिश कर रही है, लेकिन प्रकृति का संतुलन तब तक नहीं लौट सकता जब तक मनुष्य अपने व्यवहार को नहीं बदलेगा। जब तापमान बढ़ता है तो केवल गर्मी नहीं बढ़ती, बल्कि संपूर्ण जीवन चक्र प्रभावित होता है। मिट्टी की नमी कम होती है, पेड़ों की पत्तियाँ सूख जाती हैं, पशु-पक्षी अपने प्राकृतिक आवास खो देते हैं। शहरों में रहने वाले लोग गर्म हवाओं से परेशान होते हैं और गाँवों में रहने वाले किसान अपनी फसलों को नष्ट होते देखते हैं। गरम धरती का अर्थ है भूखी धरती, और भूखी धरती का अर्थ है भूखी मानवता। जब हिमखंड पिघलते हैं तो केवल बर्फ नहीं पिघलती, बल्कि भविष्य पिघलता है—नदियों का पानी घटता है, जल की उपलब्धता प्रभावित होती है, और समुद्र का बढ़ता स्तर लाखों लोगों को बेघर करने की तैयारी में है। यदि यह क्रम जारी रहा तो दुनिया के कई शहर नक्शे से गायब हो जाएंगे। बढ़ता समुद्र-स्तर यह चेतावनी दे रहा है कि यदि अब भी मनुष्य नहीं जागा तो प्रकृति खुद निर्णायक कदम उठाएगी। चरम मौसम की घटनाएँ—भीषण बाढ़, लंबे सूखे, हिंसक तूफान, भारी वर्षा, असामान्य ठंड—यह सब वह संकेत हैं जिन्हें दुनिया के सभी देशों को गंभीरता से समझना चाहिए। प्रकृति यह कह रही है कि उसने सहन करने की अपनी सीमा पार कर दी है। मनुष्य ने प्रदूषण बढ़ाकर, रसायन फैलाकर, जंगल काटकर और नदियों को कचरा फेंककर एक ऐसा वातावरण बनाया है जो पृथ्वी के लिए घातक सिद्ध हो रहा है। लेकिन इस संकट के बीच एक आशा भी है—और वह आशा है “मानव जागरूकता”। यदि मनुष्य बदल जाए, तो प्रकृति खुद को ठीक कर सकती है। प्रकृति की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि उसमें स्वयं को पुनर्जीवित करने की अद्भुत क्षमता होती है। एक पेड़ अगर कट भी जाए तो उसकी जड़ में जीवन रहता है, बस उसे संरक्षण चाहिए। नदी यदि प्रदूषित हो जाए तो उसे साफ़ होने में कुछ वर्ष लग सकते हैं, बस उसे कचरा मुक्त वातावरण चाहिए। धरती यदि गर्म हो जाए तो तापमान कम भी हो सकता है, बस हमें जहरीली गैसों को रोके बिना नहीं रहना चाहिए। आज आवश्यकता है वैश्विक प्रयासों की, व्यक्तिगत बदलावों की और सामूहिक जिम्मेदारी की। कोई सरकार अकेले जलवायु परिवर्तन को नहीं रोक सकती, कोई वैज्ञानिक अकेला धरती को नहीं बचा सकता, कोई संगठन अकेला हिमखंडों को नहीं रोक सकता। परंतु एक-एक व्यक्ति मिलकर पूरी पृथ्वी को बचा सकता है। यही वह शक्ति है जो मानवता को महान बनाती है। हमें समझना होगा कि हवा केवल एक देश की नहीं, पानी एक महाद्वीप का नहीं और मौसम किसी एक सीमा-रेखा का नहीं। यह सब पूरी मानवता के साझा संसाधन हैं। इसलिए समाधान भी पूरी मानवता का सामूहिक प्रयास होना चाहिए। हमें अपने दैनिक जीवन में छोटे-छोटे बदलाव लाने होंगे—प्लास्टिक कम करें, पेड़ों को काटने के बजाय लगाएँ, अनावश्यक बिजली का उपयोग न करें, पानी को बर्बाद न होने दें, कचरे को सही स्थान पर डालें, सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करें, और सबसे महत्वपूर्ण बात—प्रकृति के प्रति सम्मान का भाव विकसित करें। विद्यालयों में बच्चों को प्रकृति संरक्षण सिखाना चाहिए, घर में बुजुर्गों को पौधारोपण के लिए प्रेरित करना चाहिए और समाज में हर व्यक्ति को पर्यावरण के प्रति अपनी भूमिका निभानी चाहिए। हम यह क्यों भूल जाते हैं कि हमारा जीवन तभी सुरक्षित है, जब धरती सुरक्षित है? यदि पृथ्वी बीमार हुई, तो सभी बीमार होंगे; यदि पृथ्वी स्वस्थ होगी, तो मानवता भी स्वस्थ होगी। यह समय असंभव को संभव बनाने का है। यह समय है कि हम अपने बच्चों के लिए एक हरियाली से भरा भविष्य तैयार करें। यह समय है कि हम धरती को वह वापस दें जो हमने उससे लिया है। याद रखिए—धरती हमारी संपत्ति नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों की धरोहर है। हम उसके केवल रक्षक हैं, मालिक नहीं। आज जो बीज हम बोएँगे, वही कल पेड़ बनकर हमारी संतानों को छाँव देंगे। यदि हमने विनाश का बीज बो दिया, तो भविष्य में केवल पछतावा उगेगा। लेकिन यदि हमने संरक्षण, संवेदना और प्रेम के बीज बोए, तो आने वाली पीढ़ियाँ इस धरती को अपना स्वर्ग कहेंगी। इसलिए उठिए, जागिए और पृथ्वी के लिए काम कीजिए। हर व्यक्ति एक पौधा लगाए तो पृथ्वी वर्ष में अरबों नए पेड़ों की माता बन जाएगी। हर परिवार यदि पानी बचाए तो नदियाँ कभी नहीं सूखेंगी। हर शहर यदि प्रदूषण रोके तो हवा फिर से शुद्ध हो जाएगी। हर देश यदि प्रकृति से प्रेम करे तो धरती फिर से हरी हो जाएगी। आप स्वयं वह परिवर्तन बनिए जो आप दुनिया में देखना चाहते हैं। प्रकृति के लिए आपका हर कदम मानवता के भविष्य की रक्षा है। आइए प्रतिज्ञा करें—धरती को बचाएँगे, प्रकृति को सँवारेंगे और आने वाली पीढ़ियों के लिए एक सुंदर, सुरक्षित और जीवन से भरपूर दुनिया छोड़कर जाएँगे। यही हमारा कर्तव्य है, यही हमारी जिम्मेदारी है और यही मानवता का सच्चा धर्म है। प्रकृति नमामि जीवनम्।

यह अंश हमारी पुस्तक सर्व साम्य अद्वैत प्रकृति चेतनवाद दर्शन — भाग 1 : नव सवित तत्व प्रकृतिवाद से लिया गया है। इस पुस्तक का उद्देश्य प्रकृति की सर्वोच्च सत्ता की स्थापना करके विश्व में शांति स्थापित करना है, ताकि धरती पर रहने वाले सभी जीवों के जीवन में शांति बनी रहे, मनुष्य के जीवन में भी संतुलन और सौहार्द रहे, तथा सभी मनुष्य आपस में मिल-जुलकर अपने विकास का मार्ग प्रशस्त कर सकें। हमारी प्रकृति से प्रार्थना है कि धरती पर स्थित प्रत्येक जीव सुखी रहे, स्वस्थ रहे।” आप भी चाहते हैं विश्व में शांति तो हमसे संपर्क करें।

जीमेल-: cosmicadvaiticconsciousism@gmail.com

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