बीमारियों में वृद्धि और प्रकृति का असंतुलन

 


मैं संदीप सिंह सम्राट आप सभी को हाथ जोड़कर आप सभी के चरणों में प्रणाम करता हूं और आप सभी से कहता हूं प्रकृति नमामि जीवनम् मेरा आप सभी से निवेदन है कि धरती पर जीवन कायम रखने के लिए समस्त जीव जगत के लिए समस्त मानव जाति के लिए हम सबको मिलकर प्रकृति को बचाना होगा तभी हम सब अपना जीवन बचा सकते हैं और हमारे आने वाली पीढ़ियों का जीवन भी बचा सकते हैं धरती सभी जीवो का एकमात्र घर है इसमें मनुष्य भी शामिल है हम सभी मनुष्यों का पहला घर धरती है हमें अपने घर को बचाना है धरती की सभी जीव हमारे अपने हैं हमें सभी जीवों की सुरक्षा करनी है हम सभी मनुष्य प्रकृति की संतान है और हमारा कर्तव्य है कि हम अपनी मां प्रकृति की सुरक्षा करें और संरक्षण प्रदान करें धरती पर रहने वाले सभी जीव प्रकृति की संतान है और हमारे भाई बहन है हम मनुष्यों को उन सभी की सुरक्षा करनी है हम सबको मिलकर प्रकृति को बचाना है अपने घर को बचाना है अपने भाई बहनों को बचाए रखना है हम सब मिलकर अपने घर की रक्षा करें अपने घर को सुंदर बनाएं फिर से प्रकृति को खुशहाल करें हमारी मुहिम में शामिल हो “एक धरती एक भविष्य” में शामिल होकर अपना महत्वपूर्ण योगदान दें और ज्यादा से ज्यादा लोगों तक अपनी बात पहुंचाएं ताकि हम सभी मनुष्य मिलकर प्रकृति को फिर से पहले जैसा बना सकें हमारा नारा है एक धरती- एक भविष्य-एक मानवता. लिए हम सब मिलकर प्रयास करें अपने घर को सुरक्षित रखें आप सभी से हमारा निवेदन है कि इसे ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचने में हमारी मदद कीजिए हम आपसे कुछ नहीं मांग रहे हम बस इतना चाहते हैं कि हर व्यक्ति अपना कर्तव्य निभाई किसी ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचने में हमारी मदद कीजिए आप हमसे संपर्क कर सकते हैं

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धन्यवाद
🌿 “बीमारियों में वृद्धि और प्रकृति का असंतुलन”

मानव इतिहास में पहली बार ऐसा समय आया है जब मनुष्य अपनी ही बनाई दुनिया से बीमार हो रहा है। विज्ञान और तकनीक ने जीवन को सुविधाजनक बनाया, पर उसी विज्ञान ने धरती के प्राकृतिक संतुलन को ऐसा बिगाड़ दिया कि आज संपूर्ण मानव जाति एक अदृश्य खतरे के घेरे में है। बीमारियों में लगातार वृद्धि केवल चिकित्सा की विफलता का परिणाम नहीं है, बल्कि यह प्रकृति के असंतुलन की सबसे बड़ी चेतावनी है।प्रकृति एक संतुलित तंत्र है—जिसमें हवा, पानी, मिट्टी, जीव-जंतु, पेड़-पौधे और माइक्रोब्स सब एक-दूसरे से जुड़े हैं। जब इनमें से किसी एक तत्व को नुकसान पहुँचता है तो पूरा तंत्र डगमगाने लगता है। आज हवा जहरीली है, पानी रासायनिक है, मिट्टी मृत होने लगी है, भोजन प्रदूषित है और जीवन को बनाए रखने वाली जैव-विविधता नष्ट हो रही है। यह सब मिलकर मानव शरीर को कमजोर बना रहा है।बीमारियों का बढ़ना केवल एक चिकित्सा समस्या नहीं, बल्कि मानव सभ्यता की गलत जीवनशैली, प्रदूषण, मानसिक तनाव, रसायन आधारित खाद्य प्रणाली, अत्यधिक दवाओं का उपयोग, शहरी भीड़, जंगलों का कटाव, जलवायु परिवर्तन और विषाक्त पर्यावरण का कुल परिणाम है। हमारे पूर्वज प्रकृति के साथ चलते थे, इसलिए अधिक स्वस्थ रहते थे। आज का मनुष्य प्रकृति को नष्ट कर आगे बढ़ना चाहता है—इसलिए बीमार हो रहा है।धरती पर प्रकृति का असंतुलन हवा की गुणवत्ता को नष्ट कर रहा है। प्रदूषण से फेफड़ों, दिमाग और दिल पर गंभीर असर पड़ रहा है। तापमान बढ़ने से नए विषाणु सक्रिय हुए हैं। ग्लेशियर पिघलने से पुराने निष्क्रिय वायरस फिर से वातावरण में फैल रहे हैं। जंगल कटने से वन्यजीव शहरों की ओर आ रहे हैं और ज़ूनोटिक बीमारियाँ तेजी से मनुष्यों में फैल रही हैं।ये सब दिखाता है कि बीमारियों की जड़ें चिकित्सा से नहीं, बल्कि पर्यावरण से जुड़ी हैं। मनुष्य ने औद्योगिक विकास के नाम पर नदियों को नालों में बदला, खेतों में जहर डाला, हवा में धुआँ भरा, समुद्रों में प्लास्टिक डाला और जंगलों को नष्ट किया। परिणामस्वरूप धरती बीमार हुई और उसके साथ मनुष्य भी।आज की बीमारियों का मुख्य कारण प्रदूषण, तनाव, असंतुलित भोजन, खराब जीवनशैली, जलवायु परिवर्तन, प्रकृति का विनाश और पारिस्थितिकी तंत्र का टूटना है। यदि प्रकृति असंतुलित होगी तो मानव शरीर भी असंतुलित होगा—क्योंकि दोनों एक ही ऊर्जा से बने हैं।बीमारियों में वृद्धि एक चेतावनी है कि हमें वापस प्रकृति की ओर लौटना होगा। धरती को संतुलित करना होगा, क्योंकि प्रकृति का संतुलन ही मानव स्वास्थ्य का आधार है। जब तक धरती स्वस्थ नहीं होगी, मानवता स्वस्थ नहीं हो सकती।

दुनिया में बीमारियों के बढ़ने के 30 कारण

CAUSE 1 – प्रदूषित हवा (Air Pollution)

हवा जीवन का पहला तत्व है, और आज इसी तत्व में सबसे अधिक जहर घुल चुका है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार हर वर्ष वायु प्रदूषण से 70 लाख से अधिक लोग समय से पहले मर रहे हैं। यह आंकड़ा किसी महामारी से भी अधिक भयावह है। हवा का प्रदूषित होना केवल सांस से जुड़ी समस्या नहीं पैदा करता, बल्कि यह हमारे शरीर के हर अंग, हर कोशिका और संपूर्ण प्रतिरक्षा तंत्र को नुकसान पहुँचाता है। आधुनिक दुनिया में तेजी से फैल रही बीमारियों के सबसे बड़े कारणों में प्रदूषित हवा पहले स्थान पर है।औद्योगिकरण, बढ़ते वाहन, थर्मल पावर प्लांट, प्लास्टिक जलाना, पराली जलाना, निर्माण स्थल की धूल, खदानों का धुआँ और रसायन-युक्त औद्योगिक गैसें हवा का ऐसा रूप तैयार कर रही हैं जो धीरे-धीरे मानव शरीर को भीतर से खोखला कर देती हैं। PM2.5 और PM10 जैसे सूक्ष्म कण फेफड़ों के भीतर गहराई तक पहुँचकर रक्त में प्रवेश कर जाते हैं। ये कण रक्त धारा के माध्यम से हृदय, मस्तिष्क, किडनी और गर्भ में पल रहे शिशु तक पर प्रभाव डालते हैं।यह प्रदूषण प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों रूपों में गंभीर बीमारियों का कारण बन रहा है। सीधे प्रभावों में दमा, एलर्जी, फेफड़ों का संक्रमण, सीओपीडी, फेफड़ों का कैंसर, ब्रोंकाइटिस और हृदय रोग शामिल हैं। लंबे समय तक प्रदूषित हवा में रहने से रक्त की ऑक्सीजन वहन क्षमता कम होने लगती है। शरीर में लगातार विषाक्त तत्व प्रवेश करते रहते हैं, जिससे प्रतिरक्षा तंत्र कमजोर पड़ जाता है। कमजोर प्रतिरक्षा तंत्र किसी भी संक्रमण के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाता है—चाहे वह वायरस हो, बैक्टीरिया हो या फंगस।प्रदूषण का अप्रत्यक्ष असर उससे भी अधिक खतरनाक है। प्रदूषण पृथ्वी के तापमान को बढ़ाता है, जिसके कारण नए रोगजनक सक्रिय होते हैं, पुराने निष्क्रिय वायरस पुनर्जीवित होते हैं, मच्छरों और कीड़ों की प्रजातियाँ अधिक आक्रामक होती हैं और नए संक्रमणों के रास्ते खुलते हैं। तापमान बढ़ने से मलेरिया, डेंगू, चिकनगुनिया और जीका वायरस तेजी से फैलते हैं। ग्लेशियरों के पिघलने से प्राचीन संक्रमण मुक्त हो रहे हैं। जंगलों के कटने से वन्यजीवों के रोग मनुष्यों में फैलने लगे हैं। इन सब प्रक्रियाओं का मूल कारण वायु प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन है।हवा में मौजूद नाइट्रोजन ऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड और अन्य रसायन न केवल फेफड़ों को नुकसान पहुँचाते हैं, बल्कि मस्तिष्क के न्यूरॉन्स को भी प्रभावित करते हैं। कई शोध बताते हैं कि प्रदूषण मानसिक स्वास्थ्य, अवसाद, चिंता और स्मृति की क्षमता पर भी नकारात्मक प्रभाव डालता है। बच्चों में वायु प्रदूषण से अस्थमा, नवजात मृत्यु दर, फेफड़ों का अविकसित होना और ध्यान की कमी जैसी समस्याएँ बढ़ रही हैं।वायु प्रदूषण का एक गंभीर प्रभाव यह भी है कि यह शरीर में लगातार सूजन (chronic inflammation) पैदा करता है। यह सूजन धीरे-धीरे कई घातक बीमारियों की जड़ बन जाती है—जैसे किडनी फेल होना, हार्ट अटैक, स्ट्रोक, डायबिटीज, कैंसर, ब्रेन स्ट्रोक और यहाँ तक कि समय से पहले बूढ़ापा। भारत, चीन, बांग्लादेश और अफ्रीका के कई देशों में प्रदूषण स्वास्थ्य संकट बन चुका है। प्रकृति का संतुलन बिगड़ने के कारण हवा में ऑक्सीजन की मात्रा घट रही है और विषैले तत्व बढ़ रहे हैं। पेड़ों की कटाई के कारण शुद्ध हवा पैदा करने वाली प्राकृतिक मशीनें नष्ट हो रही हैं।पर्यावरणीय असंतुलन से फैली धूल, धुआँ और ज़हरीली गैसें अब शहरों के साथ-साथ गाँवों को भी प्रभावित कर रही हैं। प्रदूषण केवल बाहरी हवा को नहीं, घर के भीतर की हवा को भी जहरीला कर रहा है—जैसे गैस स्टोव का धुआँ, मच्छरदानी की कॉइल, डियोडोरेंट, पेंट, प्लास्टिक और सिंथेटिक रसायन।अंततः वायु प्रदूषण मानवता के लिए वह धीमा ज़हर है जो हर सांस के साथ शरीर में प्रवेश कर रहा है। आने वाले वर्षों में यदि हवा की गुणवत्ता नहीं सुधरी तो बीमारियों का भविष्य और भयावह होगा। वायु प्रदूषण एक पर्यावरणीय समस्या नहीं, बल्कि मानव अस्तित्व का संकट बन चुका है।

अस्वच्छ जल और जल प्रदूषण

पानी जीवन का मूल तत्व है और मानव, जीव-जंतु, पौधे—सभी इसके बिना अस्तित्व नहीं रख सकते। लेकिन आज मानवता के सामने सबसे बड़ी स्वास्थ्य चुनौती अस्वच्छ जल और जल प्रदूषण के कारण उत्पन्न हो रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के आंकड़ों के अनुसार हर वर्ष लगभग 8 लाख से अधिक लोग दूषित पानी पीने के कारण समय से पहले अपनी जान गंवा देते हैं। यह सिर्फ संख्यात्मक आंकड़ा नहीं, बल्कि लाखों परिवारों के जीवन की विडंबना और मानव सभ्यता के सामने एक गंभीर चेतावनी है।जल प्रदूषण का मुख्य स्रोत उद्योग, कृषि, शहरों का अपशिष्ट, प्लास्टिक और रासायनिक कचरा है। रसायनों और विषैले तत्वों से भरा पानी सीधे मनुष्य के शरीर में प्रवेश करता है। इसमें शामिल हैं—अत्यधिक नाइट्रेट, फॉस्फेट, भारी धातुएँ (जैसे सीसा, मरकरी, आर्सेनिक), कीट नाशक, औद्योगिक अपशिष्ट, प्लास्टिक का माइक्रोपार्टिकल्स, और मानव एवं पशु मलजनित तत्व। यह जल विषाक्त तत्व शरीर में प्रवेश कर प्रतिरक्षा तंत्र को कमजोर कर देते हैं। परिणामस्वरूप डायरिया, हैजा, टाइफाइड, हेपेटाइटिस, जलजनित संक्रमण, त्वचा रोग, गुर्दा रोग और कई प्रकार के कैंसर तेजी से बढ़ रहे हैं।अस्वच्छ जल केवल प्रत्यक्ष संक्रमण नहीं फैलाता, बल्कि अप्रत्यक्ष रूप से भी बीमारियों के लिए वातावरण तैयार करता है। दूषित पानी से खाद्य श्रृंखला प्रभावित होती है। फसलों में रसायन जमा होते हैं, मछलियों में विषैले तत्व इकट्ठा होते हैं और मनुष्य इन सभी से संक्रमित हो जाता है। इस तरह प्रदूषण का प्रभाव सीधे और धीरे-धीरे मानव स्वास्थ्य पर गहरा असर डालता है।गांवों और शहरों में जल की आपूर्ति में गंदगी और रसायन मिश्रण स्वास्थ्य संकट का मुख्य कारण है। खुले नालों, गंदगी से भरी नदियों और जलाशयों में जीवाणु और वायरस तेजी से पनपते हैं। गर्मी और मानसून में यह संक्रमण तेजी से फैलता है। यही कारण है कि उष्णकटिबंधीय देशों में जलजनित रोगों की संख्या अधिक है। पानी के असंतुलन से पारिस्थितिकी तंत्र भी प्रभावित होता है। सूखे क्षेत्रों में जल स्रोत कम होते हैं, जिससे मिट्टी की उपजाऊ शक्ति घटती है और मानव भोजन संकट का शिकार होता है। बढ़ते प्रदूषण के कारण मच्छर, मक्खी और कीड़े भी अधिक सक्रिय होते हैं, जिससे मलेरिया, डेंगू, जीका और चिकनगुनिया जैसी बीमारियाँ फैलती हैं। जलवायु परिवर्तन के कारण बाढ़ और सूखा बढ़ते हैं, जिससे जलजनित रोगों का प्रसार और तेज़ हो गया है।वर्तमान समय में प्लास्टिक प्रदूषण, औद्योगिक अपशिष्ट, रसायनयुक्त कृषि अपशिष्ट और untreated sewage सबसे बड़े खतरे हैं। मछलियों, झीलों और नदियों के जीवाणु इन विषैले तत्वों को शोषित करके मानव तक पहुँचाते हैं। इसका परिणाम है—गुर्दा, लीवर, आंत और त्वचा संबंधी गंभीर बीमारियाँ। पानी का असंतुलन केवल रोग फैलाने वाला तत्व नहीं है; यह पूरी मानव सभ्यता के लिए संकट है। वैश्विक स्तर पर यदि जल स्रोत दूषित रहेंगे तो केवल स्वास्थ्य संकट नहीं, बल्कि खाद्य सुरक्षा संकट, पर्यावरणीय असंतुलन और आर्थिक पतन भी आएगा।विश्व स्तर पर जल प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए कई प्रयास किए गए हैं। WHO और UNEP जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्थाएँ जल शुद्धिकरण, वाटर ट्रीटमेंट प्लांट, नदी संरक्षण, प्लास्टिक निषेध, और प्रदूषण नियंत्रण कानून लागू करने की दिशा में काम कर रही हैं। कई देश घरेलू और औद्योगिक अपशिष्ट के पुनः उपयोग और रीसाइक्लिंग के उपाय अपनाने लगे हैं। इसके बावजूद, बढ़ती जनसंख्या, उद्योग, कृषि और शहरीकरण के कारण जल प्रदूषण कम नहीं हो रहा।यह स्पष्ट है कि अस्वच्छ जल मानव स्वास्थ्य पर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष प्रभाव डालता है। यह केवल आज की समस्या नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए एक गंभीर चेतावनी भी है। यदि हम जल संरक्षण, जल शुद्धिकरण, प्रदूषण नियंत्रण और पर्यावरण संतुलन की दिशा में तत्काल कार्य नहीं करेंगे तो मानव जाति गंभीर स्वास्थ्य संकट का सामना करेगी। इसलिए अस्वच्छ जल और जल प्रदूषण को रोकना सिर्फ चिकित्सा का विषय नहीं, बल्कि मानव अस्तित्व और प्रकृति संतुलन की प्राथमिक जिम्मेदारी है।

असंतुलित भोजन और पोषण की कमी
अस्वस्थ भोजन और पोषण की कमी मानव स्वास्थ्य पर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से गंभीर प्रभाव डाल रहे हैं। आज की आधुनिक जीवनशैली में लोग ताजगी, पोषण और प्राकृतिक संतुलन को नज़रअंदाज कर रहे हैं। तेजी से बढ़ती बीमारियों की सबसे बड़ी वजह असंतुलित आहार है। असंतुलित भोजन का अर्थ केवल कम खाना या अधिक खाना नहीं है; बल्कि यह है कि भोजन में आवश्यक विटामिन, खनिज, प्रोटीन, फाइबर और एनर्जी का संतुलित मिश्रण न होना। ऐसे आहार से शरीर के प्रतिरक्षा तंत्र कमजोर हो जाते हैं, अंगों का कार्य बाधित होता है और विभिन्न बीमारियों का खतरा बढ़ता है।विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के आंकड़ों के अनुसार, विश्व की लगभग 2 अरब जनसंख्या विटामिन और खनिज की कमी से पीड़ित है। इसके परिणामस्वरूप बच्चों में मानसिक और शारीरिक विकास की कमी, वयस्कों में कमजोर प्रतिरक्षा और बुजुर्गों में रोग प्रतिरोधक क्षमता घटती है। असंतुलित भोजन से हृदय रोग, डायबिटीज, मोटापा, उच्च रक्तचाप, कोलेस्ट्रॉल संबंधी बीमारियाँ और कैंसर जैसी गंभीर बीमारियाँ तेजी से फैल रही हैं।असंतुलित आहार के कारण शरीर का मेटाबोलिज्म बिगड़ जाता है। अधिक जंक फूड, तला-भुना भोजन, प्रिज़र्वेटिव्स और पैकेज्ड फूड शरीर में सूजन, ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस और हॉर्मोनल असंतुलन पैदा करते हैं। यह स्थिति धीरे-धीरे मधुमेह, थायरॉइड, लीवर संबंधी बीमारियाँ और हृदय रोगों का मार्ग बनाती है। इसके अलावा शरीर में आवश्यक पोषण तत्वों की कमी से प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर हो जाती है और व्यक्ति किसी भी संक्रमण के प्रति संवेदनशील हो जाता है।विशेषज्ञों के अनुसार, आधुनिक शहरों में तेजी से बढ़ते processed और fast food की वजह से शरीर में आवश्यक पोषण तत्वों की कमी हो रही है। गरीब क्षेत्रों में विटामिन और खनिज युक्त भोजन की अनुपलब्धता, कुपोषण और भूख बच्चों और वृद्धों को गंभीर रूप से प्रभावित कर रही है। दोनों ही परिस्थितियों में मानव प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर पड़ती है और बीमारियों का जोखिम बढ़ जाता है।असंतुलित आहार का प्रभाव केवल प्रत्यक्ष नहीं है। यह लंबे समय में मानसिक स्वास्थ्य, ऊर्जा स्तर, ध्यान क्षमता और मनोबल पर भी असर डालता है। बच्चों में विटामिन और आयरन की कमी से सीखने की क्षमता कम होती है। वयस्कों में थकान, अवसाद और ध्यान की कमी बढ़ती है। बुजुर्गों में हड्डियों की कमजोरी, मांसपेशियों की हानि और रोग प्रतिरोधक क्षमता घटने लगती है।यह समस्या वैश्विक स्तर पर भी गंभीर है। UN और WHO के अनुसार, हर साल लगभग 45 करोड़ लोग कुपोषण के शिकार होते हैं, जबकि 15 करोड़ लोग obesity और अस्वस्थ जीवनशैली के कारण गंभीर रोगों से जूझते हैं। यह असंतुलन सीधे मानव स्वास्थ्य और जीवन गुणवत्ता को प्रभावित करता है।असंतुलित भोजन और पोषण की कमी की वजह से रोग तेजी से फैलते हैं। कमजोर प्रतिरक्षा वाले व्यक्ति आसानी से वायरल, बैक्टीरियल और फंगल संक्रमण का शिकार होते हैं। इसके साथ ही, बच्चों में विकास में कमी, वयस्कों में काम करने की क्षमता घटना और वृद्धों में जीवन प्रत्याशा कम होना सामान्य हो गया है।खाद्य सुरक्षा और जैव-विविधता भी इस समस्या से प्रभावित हैं। रासायनिक खेती, monoculture और प्राकृतिक पोषण तत्वों की कमी से पौधों और जानवरों में पोषण स्तर घटता है। इस कारण मनुष्य को पर्याप्त पोषण नहीं मिल पाता। परिणामस्वरूप बीमारियाँ अधिक फैलती हैं और महामारी के जोखिम बढ़ते हैं।अंततः, असंतुलित भोजन और पोषण की कमी मानव स्वास्थ्य का सबसे बड़ा अदृश्य खतरा है। यह न केवल व्यक्तिगत स्वास्थ्य पर असर डालता है, बल्कि सामाजिक और आर्थिक स्तर पर भी नुकसान पहुँचाता है। केवल पोषण संतुलित कर और प्राकृतिक भोजन अपनाकर ही मानव जीवन को बीमारियों से बचाया जा सकता है।
मानसिक तनाव और जीवनशैली संबंधी रोग
मानव स्वास्थ्य पर बीमारियों का एक अत्यंत प्रमुख कारण आज मानसिक तनाव और असंतुलित जीवनशैली बन गया है। आधुनिक जीवन की तेज़ गति, अत्यधिक प्रतिस्पर्धा, शहरीकरण, तकनीकी निर्भरता और सामाजिक दबाव ने मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव डाला है। तनाव केवल मानसिक समस्या नहीं है, बल्कि यह शारीरिक स्वास्थ्य, प्रतिरक्षा तंत्र, हृदय स्वास्थ्य और जीवन प्रत्याशा पर सीधे असर डालता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के आंकड़ों के अनुसार, विश्व की लगभग 4.4% जनसंख्या (लगभग 3.5 करोड़ लोग) गंभीर डिप्रेशन और मानसिक तनाव के शिकार हैं, और यह संख्या हर साल बढ़ रही है।मानसिक तनाव शरीर के हॉर्मोनल संतुलन को बिगाड़ देता है। कोर्टिसोल, एड्रेनालिन और अन्य तनाव-हॉर्मोन की अत्यधिक मात्रा रक्त धारा में प्रवेश करती है। यह हृदय गति, रक्तचाप, रक्त में शर्करा स्तर और प्रतिरक्षा क्षमता को प्रभावित करता है। लंबे समय तक तनाव रहने पर हृदय रोग, स्ट्रोक, डायबिटीज, उच्च रक्तचाप, मांसपेशियों की कमजोरी और नींद की समस्या जैसी बीमारियाँ उत्पन्न होती हैं। तनाव की स्थिति में शरीर में सूजन (inflammation) बढ़ जाती है, जिससे कैंसर, ऑटोइम्यून रोग और मानसिक रोगों का खतरा भी बढ़ता है।जीवनशैली के कारण होने वाली बीमारियाँ भी इसी से जुड़ी हैं। अस्वस्थ भोजन, नींद की कमी, शारीरिक गतिविधि का अभाव, अत्यधिक डिजिटल स्क्रीन समय, शराब और धूम्रपान जैसी आदतें जीवनशैली रोगों को बढ़ावा देती हैं। यह केवल व्यक्तिगत स्वास्थ्य को प्रभावित नहीं करता, बल्कि सामाजिक और आर्थिक स्तर पर भी गंभीर परिणाम लाता है।तनाव और जीवनशैली रोगों का अप्रत्यक्ष प्रभाव भी अत्यधिक खतरनाक है। तनावग्रस्त व्यक्ति अक्सर अस्वास्थ्यकर भोजन करता है, व्यायाम नहीं करता, शराब और तम्बाकू का सेवन बढ़ाता है, जिससे अतिरिक्त रोग उत्पन्न होते हैं। मानसिक रोग और शारीरिक रोग एक-दूसरे को बढ़ाते हैं। तनाव वाले लोग वायरल, बैक्टीरियल और फंगल संक्रमणों के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं। बच्चों और किशोरों में मानसिक तनाव सीखने की क्षमता, ध्यान, स्मृति और सामाजिक व्यवहार पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। बुजुर्गों में तनाव और अस्वस्थ जीवनशैली मस्तिष्क क्षमता और जीवन प्रत्याशा को कम कर देती है।शहरीकरण और आधुनिकता ने मनुष्य को प्रकृति से दूर कर दिया है। प्राकृतिक वातावरण में समय बिताने, शारीरिक गतिविधि, सामाजिक संपर्क और संतुलित जीवनशैली न होने से मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित हो रहा है। डिजिटल मीडिया का अत्यधिक उपयोग नींद चक्र को बिगाड़ता है, आंखों और मस्तिष्क पर दबाव डालता है, और तंत्रिका तंत्र की क्षमता घटाता है। यह तनाव और जीवनशैली रोगों की चेन को और तेज करता है।विश्व स्तर पर मानसिक तनाव और जीवनशैली रोग तेजी से बढ़ रहे हैं। अमेरिका, यूरोप, भारत, चीन और अफ्रीका के शहरों में इस समस्या की व्यापकता देखी जा रही है। नौकरी, प्रतियोगिता, प्रदूषण, भीड़, यातायात, जलवायु असंतुलन और आर्थिक दबाव ने मानसिक स्वास्थ्य पर भारी बोझ डाला है। प्रतिरक्षा तंत्र कमजोर होने से बीमारियाँ फैलती हैं और स्वास्थ्य देखभाल पर अतिरिक्त बोझ पड़ता है।मनोवैज्ञानिक और चिकित्सा शोधों के अनुसार, तनाव कम करने और जीवनशैली रोगों को नियंत्रित करने के लिए समय पर निदान, व्यायाम, योग, ध्यान, सामाजिक समर्थन, प्राकृतिक वातावरण में समय बिताना और संतुलित आहार बेहद आवश्यक है। यदि यह संतुलन नहीं बनाया गया तो मानसिक रोग, हृदय रोग, डायबिटीज, मोटापा, उच्च रक्तचाप और अन्य जीवनशैली रोग बढ़ते रहेंगे।इस प्रकार, मानसिक तनाव और जीवनशैली संबंधी रोग आज विश्व स्तर पर तेजी से फैल रहे हैं और बीमारियों में वृद्धि का प्रमुख कारण बन गए हैं। यह न केवल व्यक्तिगत स्वास्थ्य पर असर डालता है, बल्कि परिवार, समाज और राष्ट्र की उत्पादकता, स्थिरता और जीवन गुणवत्ता को भी प्रभावित करता है। इसलिए तनाव प्रबंधन, संतुलित जीवनशैली और प्राकृतिक जीवनशैली अपनाना मानव स्वास्थ्य और जीवन की गुणवत्ता के लिए अनिवार्य हो गया है।
अस्वच्छ भोजन और खाद्य सुरक्षा संकट
खाद्य सुरक्षा और स्वच्छता मानव स्वास्थ्य का मूल आधार हैं। आज विश्व में बीमारियों के फैलने का एक प्रमुख कारण अस्वच्छ भोजन और भोजन की असुरक्षा बन गया है। खाद्य सुरक्षा का अर्थ केवल पर्याप्त भोजन उपलब्ध होना नहीं है, बल्कि यह सुनिश्चित करना है कि भोजन पोषणयुक्त, स्वच्छ और रोगमुक्त हो। लेकिन तेजी से बढ़ती जनसंख्या, औद्योगिकीकरण, रासायनिक खेती, प्रदूषण और वितरण तंत्र की विफलताओं ने खाद्य सुरक्षा संकट पैदा कर दिया है। अस्वच्छ भोजन मानव स्वास्थ्य पर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से गंभीर प्रभाव डालता है।विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के आंकड़ों के अनुसार, हर वर्ष लगभग 6 करोड़ लोग खाद्यजनित संक्रमणों से प्रभावित होते हैं और 4 लाख से अधिक लोग मृत्यु का शिकार होते हैं। इसके पीछे मुख्य कारण हैं—अशुद्ध पानी से धोए गए फल और सब्ज़ियाँ, रसायनों और कीटनाशकों का अधिक प्रयोग, पशु उत्पादों का संक्रमण, बासी या संक्रमित खाद्य पदार्थ और गर्मी एवं नमी के कारण सूक्ष्म जीवाणुओं का फैलना।अस्वच्छ भोजन प्रत्यक्ष रूप से पेट, आंत और लीवर को प्रभावित करता है। इससे डायरिया, टाइफाइड, हेपेटाइटिस, फूड पॉइज़निंग, आंतरिक संक्रमण और गुर्दा रोग बढ़ते हैं। अप्रत्यक्ष प्रभावों में प्रतिरक्षा तंत्र की कमजोरी, बच्चों में विकास बाधित होना, वयस्कों में ऊर्जा और कामकाज की क्षमता में कमी और बुजुर्गों में रोग सहनशीलता में गिरावट शामिल है।खाद्य सुरक्षा संकट का मुख्य कारण केवल अस्वच्छता नहीं है। आधुनिक कृषि में अत्यधिक रासायनिक उर्वरक, कीटनाशक और हॉर्मोन का उपयोग मिट्टी और पानी को विषैला बना देता है। इसके कारण फसलें पोषण तत्वों में कम और विषाक्त तत्वों में अधिक हो जाती हैं। पशुपालन में उपयोग किए जाने वाले एंटीबायोटिक्स और हॉर्मोन मानव शरीर में प्रतिरोधक क्षमता को प्रभावित करते हैं। इस प्रकार अस्वच्छ भोजन और रसायनयुक्त कृषि खाद्य सुरक्षा संकट और बीमारियों का दोहरा खतरा उत्पन्न करती है।विश्व स्तर पर खाद्य वितरण तंत्र की असमानता भी एक बड़ा कारण है। कुछ क्षेत्रों में अत्यधिक भोजन उपलब्ध है, जबकि कई गरीब और विकासशील देशों में लोग पर्याप्त पोषण प्राप्त नहीं कर पाते। इस असमानता के कारण भूख, कुपोषण, एनिमिया, विटामिन की कमी और रोग प्रतिरोधक क्षमता में गिरावट जैसी समस्याएँ बढ़ रही हैं।सुपरमार्केट और औद्योगिक प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों का बढ़ता उपयोग भी बीमारियों के फैलने का कारण बन रहा है। अत्यधिक चीनी, नमक, ट्रांस फैट और preservatives से भरा भोजन मोटापा, हृदय रोग, डायबिटीज और कैंसर जैसी जीवन शैली रोगों को बढ़ावा देता है। इस प्रकार अस्वच्छ भोजन केवल संक्रमणजन्य रोग ही नहीं बल्कि जीवन शैली रोगों का भी प्रमुख कारण बनता है।खाद्य सुरक्षा संकट का प्रभाव पर्यावरण और जैव-विविधता पर भी पड़ता है। monoculture खेती, जंगलों की कटाई, भूमिगत जल का अत्यधिक उपयोग, और रसायनों का प्रयोग प्राकृतिक संतुलन को बिगाड़ते हैं। मिट्टी की उर्वरता घटती है और प्राकृतिक पोषण तत्वों की कमी के कारण फसलें रोगग्रस्त और कमजोर हो जाती हैं। मानव स्वास्थ्य और प्रकृति का यह प्रतिकूल प्रभाव सीधे जुड़ा है।समग्र रूप से देखा जाए तो अस्वच्छ भोजन और खाद्य सुरक्षा संकट मानव स्वास्थ्य, सामाजिक स्थिरता और पर्यावरणीय संतुलन के लिए गंभीर खतरा है। यदि वैश्विक स्तर पर स्वच्छ भोजन, पोषणयुक्त आहार, रासायनिक रहित कृषि और वितरण तंत्र की सुधार नहीं की गई तो बीमारियाँ और महामारी तेजी से फैलेंगी। इसलिए खाद्य सुरक्षा और स्वच्छ भोजन सुनिश्चित करना केवल स्वास्थ्य का सवाल नहीं, बल्कि मानव अस्तित्व और भविष्य की जिम्मेदारी है।
प्रदूषित पर्यावरण और रासायनिक उत्सर्जन
मानव स्वास्थ्य पर बीमारियों के फैलने का एक अत्यंत गंभीर कारण आज प्रदूषित पर्यावरण और रासायनिक उत्सर्जन बन चुका है। आधुनिक औद्योगिकीकरण, तकनीकी प्रगति और शहरीकरण ने जीवन को सुविधाजनक बनाया है, लेकिन इसी प्रगति के साथ पर्यावरण में विषाक्त तत्वों की मात्रा इतनी बढ़ गई है कि यह मानव जीवन के लिए प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष खतरा बन गया है। प्रदूषित पर्यावरण में सांस लेना, भोजन करना और पानी पीना भी अब जोखिम भरा हो गया है।रासायनिक उत्सर्जन में औद्योगिक गैसें, पेंट और प्लास्टिक उद्योग, कीटनाशक, नाइट्रोजन और सल्फर युक्त उर्वरक, वाहन उत्सर्जन, रासायनिक अपशिष्ट और अन्य विषैले तत्व शामिल हैं। ये तत्व मिट्टी, पानी और हवा में मिश्रित होकर पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित करते हैं। इस तरह का विषाक्त वातावरण मनुष्य के अंगों और कोशिकाओं में जाकर प्रतिरक्षा तंत्र को कमजोर करता है। कमजोर प्रतिरक्षा वाले व्यक्ति किसी भी संक्रमण के प्रति संवेदनशील हो जाते हैं और बीमारियाँ तेजी से फैलती हैं।प्रदूषित पर्यावरण सीधे तौर पर फेफड़े, हृदय, लीवर, गुर्दा और मस्तिष्क को प्रभावित करता है। PM2.5 और PM10 जैसे सूक्ष्म कण, कार्बन मोनोऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन ऑक्साइड जैसे गैसें फेफड़ों के भीतर गहराई तक प्रवेश कर अंगों को नुकसान पहुँचाती हैं। इससे दमा, एलर्जी, फेफड़ों का संक्रमण, हृदय रोग और स्ट्रोक जैसी बीमारियाँ उत्पन्न होती हैं। दीर्घकालिक रूप से यह ऑक्सीजन वहन क्षमता, मेटाबोलिज्म और न्यूरोलॉजिकल संतुलन को प्रभावित करता है।अप्रत्यक्ष प्रभाव भी गंभीर हैं। प्रदूषित वातावरण के कारण मच्छर, मक्खी और अन्य कीटों की संख्या बढ़ जाती है, जिससे मलेरिया, डेंगू, चिकनगुनिया और ज़ूनोटिक बीमारियाँ तेजी से फैलती हैं। रासायनिक तत्वों से संक्रमित मिट्टी और पानी फसलों और पशुओं में विषैले तत्व जमा कर देते हैं, जो भोजन के माध्यम से मानव शरीर में प्रवेश करते हैं। परिणामस्वरूप कैंसर, लीवर रोग, गुर्दा रोग और हृदय रोग बढ़ते हैं।प्रदूषित पर्यावरण से उत्पन्न रासायनिक उत्सर्जन मानसिक स्वास्थ्य पर भी प्रभाव डालते हैं। शोध बताते हैं कि भारी धातुएँ और VOC (volatile organic compounds) न्यूरोलॉजिकल रोग, अवसाद, चिंता और स्मृति हानि को बढ़ाते हैं। बच्चों में यह सीखने की क्षमता और ध्यान पर भी नकारात्मक प्रभाव डालता है। प्रदूषित पर्यावरण मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य का समग्र संतुलन बिगाड़ देता है।विश्व स्तर पर प्रदूषण और रासायनिक उत्सर्जन तेजी से बढ़ रहे हैं। औद्योगिक देशों में कारखाने, रासायनिक प्लांट, ऊर्जा उत्पादन और परिवहन प्रणाली भारी उत्सर्जन का स्रोत हैं। विकासशील देशों में भी औद्योगिक अपशिष्ट और रासायनिक खेती पर्यावरण को प्रदूषित कर रही है। इसका परिणाम वैश्विक स्वास्थ्य संकट, असंतुलित पारिस्थितिकी तंत्र और बीमारियों के तेज़ी से फैलने के रूप में दिखाई देता है।प्रदूषित पर्यावरण और रासायनिक उत्सर्जन का नियंत्रण केवल सरकारी नियम और तकनीक तक सीमित नहीं होना चाहिए। व्यक्तिगत जिम्मेदारी, उद्योगों की स्वच्छ प्रौद्योगिकी, कचरा प्रबंधन, रासायनिक उपयोग में नियंत्रण और पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा आवश्यक है। यदि हम पर्यावरण संतुलन को नहीं बनाएंगे तो बीमारियों का खतरा केवल वर्तमान पीढ़ी तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी गंभीर स्वास्थ्य संकट उत्पन्न होगा।अतः प्रदूषित पर्यावरण और रासायनिक उत्सर्जन मानव स्वास्थ्य के लिए प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से सबसे बड़े खतरे में से एक हैं। इनके कारण बीमारियों का फैलाव तेज़ होता है, प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर होती है, जीवन प्रत्याशा घटती है और सामाजिक तथा आर्थिक स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ता है। इसलिए प्रदूषित पर्यावरण और रासायनिक उत्सर्जन को नियंत्रित करना मानव अस्तित्व और जीवन की गुणवत्ता के लिए अनिवार्य है।
शहरीकरण और अत्यधिक जनसंख्या दबाव
आज की दुनिया में तेजी से बढ़ता शहरीकरण और जनसंख्या दबाव मानव स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव डाल रहा है। शहरीकरण का अर्थ केवल शहरों का विस्तार नहीं है, बल्कि यह जीवनशैली, आवास, यातायात, सामाजिक संरचना और संसाधनों के उपयोग में बदलाव का पर्याय है। अत्यधिक जनसंख्या दबाव के कारण शहरों में बुनियादी सुविधाओं की कमी, स्वच्छता की समस्या, आवास का अभाव, प्रदूषण, पानी की कमी और स्वास्थ्य सेवाओं पर बोझ बढ़ता है। ये सभी कारक बीमारियों के बढ़ने के प्रमुख कारण बनते हैं।शहरी क्षेत्रों में वायु प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण, जल प्रदूषण और अपशिष्ट प्रबंधन की समस्या अधिक होती है। अत्यधिक जनसंख्या के कारण संसाधनों का दुरुपयोग और अव्यवस्थित निर्माण होता है, जिससे प्रदूषण और अस्वच्छता बढ़ती है। गंदे पानी और भोजन, प्रदूषित हवा, भीड़भाड़ और तनाव के कारण संक्रामक और जीवनशैली रोग दोनों तेजी से फैलते हैं।अनुसंधान बताते हैं कि शहरीकरण से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष बीमारियाँ बढ़ती हैं। प्रत्यक्ष प्रभावों में वायरल और बैक्टीरियल संक्रमण, फूड पॉइज़निंग, दमा, एलर्जी और हृदय रोग शामिल हैं। अप्रत्यक्ष प्रभावों में मानसिक तनाव, नींद की कमी, अवसाद, मोटापा, उच्च रक्तचाप और प्रतिरक्षा प्रणाली का कमजोर होना शामिल है। अत्यधिक जनसंख्या दबाव के कारण स्वास्थ्य सुविधाओं पर बोझ बढ़ जाता है, जिससे समय पर उपचार और रोकथाम की प्रक्रिया प्रभावित होती है।शहरीकरण के कारण प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र प्रभावित होता है। जंगल, खेत, नदियाँ और जलाशय शहरी विस्तार के कारण नष्ट हो रहे हैं। यह असंतुलन नए रोगजनकों और कीटों के फैलने का रास्ता बनाता है। उदाहरण के लिए, घनी आबादी वाले क्षेत्रों में मच्छर और कीट तेजी से फैलते हैं, जिससे मलेरिया, डेंगू, चिकनगुनिया और अन्य vector-borne diseases बढ़ते हैं। अत्यधिक निर्माण और असंतुलित विकास जल चक्र, मिट्टी की उर्वरता और हवा की गुणवत्ता को प्रभावित करता है, जिससे बीमारियों के जोखिम में वृद्धि होती है।जनसंख्या दबाव के कारण सामाजिक स्वास्थ्य पर भी असर पड़ता है। अत्यधिक भीड़, यातायात, शोर और आवास की कमी मानसिक तनाव और जीवनशैली रोगों को बढ़ावा देते हैं। शहरी जीवन में शारीरिक गतिविधि कम हो जाती है, संतुलित आहार और प्राकृतिक वातावरण का अभाव होता है। यह सभी कारक प्रतिरक्षा प्रणाली को कमजोर कर मानव शरीर को संक्रमण और रोगों के प्रति संवेदनशील बनाते हैं।विश्व स्तर पर शहरीकरण और जनसंख्या दबाव की समस्या तीव्र है। भारत, चीन, अमेरिका और अफ्रीका के तेजी से बढ़ते शहरों में स्वास्थ्य संकट बढ़ रहा है। अपर्याप्त स्वच्छता, कचरा प्रबंधन की कमी, गंदे जल स्रोत और असुरक्षित आवास रोग फैलने के प्रमुख कारण बन रहे हैं। शहरी आबादी के बढ़ने के साथ बीमारियाँ फैलने की गति भी बढ़ रही है।शहरीकरण और जनसंख्या दबाव के समाधान के लिए कई उपाय सुझाए गए हैं। शहरी नियोजन, स्वास्थ्य और स्वच्छता सेवाओं का विस्तार, जल और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना, प्राकृतिक संसाधनों का संतुलित उपयोग, भीड़-भाड़ कम करना और सामाजिक जागरूकता बढ़ाना आवश्यक है। यदि ये उपाय नहीं किए गए तो शहरीकरण मानव स्वास्थ्य का सबसे बड़ा संकट बन सकता है।इस प्रकार, शहरीकरण और अत्यधिक जनसंख्या दबाव बीमारियों के फैलाव, पर्यावरण असंतुलन और सामाजिक स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव डालते हैं। यह समस्या केवल व्यक्तिगत नहीं, बल्कि वैश्विक स्तर पर मानव अस्तित्व के लिए चुनौती बन चुकी है। इसलिए संतुलित शहरी नियोजन, जनसंख्या नियंत्रण और प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण अत्यंत आवश्यक है।
जलवायु परिवर्तन और चरम मौसम
जलवायु परिवर्तन और चरम मौसम मानव स्वास्थ्य और जीवन पर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से गंभीर प्रभाव डाल रहे हैं। पृथ्वी का तापमान लगातार बढ़ रहा है, ग्लेशियर पिघल रहे हैं, समुद्र का स्तर बढ़ रहा है, और प्राकृतिक आपदाएँ—जैसे बाढ़, सूखा, तूफान, हीटवेव और चक्रवात—अत्यधिक तीव्र हो रही हैं। यह परिवर्तन न केवल पर्यावरणीय असंतुलन उत्पन्न कर रहा है, बल्कि बीमारियों के फैलाव, खाद्य सुरक्षा संकट, जल संकट और मानव जीवन की गुणवत्ता पर भी गहरा असर डाल रहा है।वैज्ञानिक अध्ययनों के अनुसार, पिछले 100 वर्षों में वैश्विक तापमान लगभग 1.2°C बढ़ चुका है। इससे समुद्र का स्तर लगभग 20 सेंटीमीटर बढ़ा है और गर्मी, वर्षा और तूफान की चरम घटनाओं की तीव्रता बढ़ी है। चरम मौसम के कारण फसलों की उपज घटती है, जल स्रोत कम होते हैं और प्रतिकूल मौसम मानव स्वास्थ्य और जीवन शैली पर गंभीर असर डालता है।तापमान बढ़ने से कई बीमारियों का खतरा बढ़ गया है। हीटवेव के कारण हृदय रोग, थकान, स्ट्रोक, और तंत्रिका रोग बढ़ते हैं। अत्यधिक गर्मी और सूखे के कारण पानी और खाद्य संकट उत्पन्न होते हैं, जिससे कुपोषण, विटामिन और खनिज की कमी बढ़ती है। बाढ़ और तूफान के कारण जलजनित रोग जैसे हैजा, टाइफाइड, डायरिया और वायरल संक्रमण तेजी से फैलते हैं। चरम मौसम नए रोगजनकों और vector-borne रोगों के लिए अवसर पैदा करता है।उच्च तापमान और चरम मौसम से पर्यावरण असंतुलित होता है। जंगलों के कटने और भूमि उपयोग के बदलाव के कारण वन्यजीव मानव आवासों के करीब आते हैं। यह zoonotic diseases (जैसे SARS, MERS, COVID-19) के फैलाव को बढ़ावा देता है। ग्लेशियर पिघलने से पुराने वायरस और बैक्टीरिया पुनः सक्रिय हो सकते हैं। अत्यधिक वर्षा और बाढ़ से गंदा पानी फैलता है, जिससे मलेरिया, डेंगू और अन्य vector-borne रोग बढ़ते हैं।जलवायु परिवर्तन का अप्रत्यक्ष प्रभाव सामाजिक और आर्थिक स्वास्थ्य पर भी पड़ता है। फसल उत्पादन घटने से खाद्य महँगाई बढ़ती है। गरीबी और कुपोषण बढ़ते हैं। बढ़ती गर्मी और प्राकृतिक आपदाओं से मानसिक तनाव और अवसाद की स्थिति भी बढ़ती है। यह सभी कारक मानव प्रतिरक्षा तंत्र को प्रभावित करते हैं और बीमारियों के फैलाव को तेज़ करते हैं।विश्व स्तर पर जलवायु परिवर्तन के कारण स्वास्थ्य संकट बढ़ रहा है। IPCC और WHO के आंकड़े बताते हैं कि 2030 तक चरम मौसम और तापमान वृद्धि से 2 से 4 करोड़ लोग सीधे प्रभावित होंगे। विकासशील देशों में स्वास्थ्य सेवाओं की कमी, असुरक्षित आवास, और जल एवं खाद्य असुरक्षा के कारण स्थिति और गंभीर होगी।मानव गतिविधियाँ जलवायु परिवर्तन का मुख्य कारण हैं। औद्योगिकीकरण, जीवाश्म ईंधन का अत्यधिक उपयोग, वनों की कटाई, प्रदूषण और शहरीकरण पृथ्वी की गर्मी बढ़ाने और मौसम की चरम घटनाओं को उत्पन्न करने में प्रमुख भूमिका निभाते हैं। यदि इन गतिविधियों को नियंत्रित नहीं किया गया तो भविष्य में स्वास्थ्य और जीवन पर इसके दुष्परिणाम और गंभीर होंगे।जलवायु परिवर्तन और चरम मौसम को नियंत्रित करने के लिए वैश्विक स्तर पर कई प्रयास हो रहे हैं। पेरिस समझौता, COP सम्मेलन, नवीकरणीय ऊर्जा, ऊर्जा दक्षता, वनों की सुरक्षा और प्राकृतिक संसाधनों का संतुलित उपयोग इसके मुख्य उपाय हैं। व्यक्तिगत स्तर पर भी जल संरक्षण, कार्बन उत्सर्जन कम करना और प्राकृतिक जीवनशैली अपनाना महत्वपूर्ण है।इस प्रकार, जलवायु परिवर्तन और चरम मौसम मानव स्वास्थ्य, भोजन और जल सुरक्षा, प्रतिरक्षा तंत्र और जीवन प्रत्याशा पर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से गंभीर प्रभाव डाल रहे हैं। इसके कारण बीमारियों का फैलाव बढ़ रहा है और जीवन की गुणवत्ता घट रही है। इसलिए जलवायु संरक्षण, प्राकृतिक संतुलन बनाए रखना और कार्बन उत्सर्जन कम करना मानव अस्तित्व के लिए अनिवार्य हो गया है।
प्रकृति नमामि जीवनम्।

यह अंश हमारी पुस्तक सर्व साम्य अद्वैत प्रकृति चेतनवाद दर्शन — भाग 1 : नव सवित तत्व प्रकृतिवाद से लिया गया है। इस पुस्तक का उद्देश्य प्रकृति की सर्वोच्च सत्ता की स्थापना करके विश्व में शांति स्थापित करना है, ताकि धरती पर रहने वाले सभी जीवों के जीवन में शांति बनी रहे, मनुष्य के जीवन में भी संतुलन और सौहार्द रहे, तथा सभी मनुष्य आपस में मिल-जुलकर अपने विकास का मार्ग प्रशस्त कर सकें। हमारी प्रकृति से प्रार्थना है कि धरती पर स्थित प्रत्येक जीव सुखी रहे, स्वस्थ रहे।” आप भी चाहते हैं विश्व में शांति तो हमसे संपर्क करें।



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