जैव-विविधता का अर्थ है—धरती पर पाए जाने वाले सभी जीवित प्राणियों की विविधता, जिसमें सूक्ष्म जीवाणु, पौधे, पशु, पक्षी, कीट, जलचर, स्थलीय प्राणी, वनस्पतियाँ, पेड़-पौधे, घास, फफूंद, कवक, सूक्ष्म कोशिकाएँ, जलीय पारिस्थितिकी तंत्र और जंगलों की प्रजातियाँ शामिल हैं।
इसका वैज्ञानिक अर्थ है—किसी पारिस्थितिकी तंत्र में विभिन्न जीवों की कुल संख्या, उनकी विविधता, उनके आपसी संबंध और पर्यावरण के प्रति उनकी भूमिका।
जैव-विविधता पृथ्वी के संतुलन, भोजन-श्रृंखला, जल-चक्र, जलवायु नियंत्रण, परागण, मिट्टी की उपजाऊ शक्ति और संपूर्ण जीवन-व्यवस्था की रीढ़ है।
जैव-विविधता पृथ्वी की आत्मा है। यह वह शक्ति है जिसके कारण हमारा ग्रह जीवित है। यदि पृथ्वी को एक विशाल वृक्ष माना जाए तो जैव-विविधता उसकी जड़ें हैं; यदि पृथ्वी को एक शरीर माना जाए तो जैव-विविधता उसकी धमनियाँ, कोशिकाएँ और रक्त-संचार है। जब जड़ें मजबूत होती हैं तो वृक्ष फलता-फूलता है, लेकिन जब जड़ें सूखने लगती हैं तो वृक्ष अपने सर्वाधिक हरे दिनों के बावजूद भीतर से खोखला होने लगता है। यही स्थिति आज पृथ्वी की है—ऊपर से सब कुछ चलता हुआ लगता है, परंतु अंदर से जैव-विविधता खत्म होने के कारण हमारी धरती खोखली हो रही है।
वैज्ञानिक अध्ययनों के अनुसार पिछले 50 वर्षों में धरती से 69% वन्य प्राणी, 35% पक्षी प्रजातियाँ, 40% उभयचर प्रजातियाँ और लगभग 50% कीटों की आबादी समाप्त हो चुकी है। इसे वैज्ञानिक भाषा में “सिक्स्थ मास एक्सटिंक्शन”—अर्थात छठा सामूहिक विनाश कहा जा रहा है। मानव-जनित गतिविधियाँ—जंगलों की कटाई, प्रदूषण, रसायनों का अत्यधिक उपयोग, जलवायु परिवर्तन, शहरीकरण, खनन, प्लास्टिक कचरा—इन सबने जीवन के प्राकृतिक संतुलन को बुरी तरह क्षतिग्रस्त कर दिया है।
जैव-विविधता का विनाश यह दर्शाता है कि पृथ्वी की भोजन-श्रृंखला (Food Chain) टूट रही है। यदि घास खत्म हो जाए तो घास खाने वाले पशु खत्म होंगे, फिर उन पर निर्भर मांसाहारी जीव खत्म होंगे। यदि मधुमक्खियाँ खत्म हो जाएँ तो परागण रुक जाएगा जिससे 70% फसलें नष्ट हो जाएँगी। यदि कीट-पतंगे गायब हो जाएँ तो मिट्टी कमजोर हो जाएगी। यदि मछलियाँ खत्म होंगी तो समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र टूट जाएगा।
यह विनाश केवल जंगलों तक सीमित नहीं है; यह मानव जीवन को सीधे प्रभावित कर रहा है। हवा में ऑक्सीजन घट रही है, रोग बढ़ रहे हैं, जल-प्रदूषण बढ़ रहा है, भोजन में रसायन बढ़ रहे हैं, और मौसम असामान्य हो रहा है।
तुलनात्मक अध्ययन बताता है कि—
• जहाँ जैव-विविधता अधिक है, वहाँ जलवायु संतुलित है, जल-स्तर स्थिर है, बाढ़-सूखा कम है, मिट्टी उपजाऊ है और स्वास्थ्य बेहतर है।
• लेकिन जहाँ जैव-विविधता खत्म हो चुकी है, वहाँ बंजर भूमि, सूखा, बाढ़, प्रदूषण, महामारियाँ और आर्थिक संकट बढ़ते जा रहे हैं।
धरती पर हो रहे विनाश का सबसे बड़ा कारण मनुष्य की लालसा है। जंगल काटे गए ताकि शहर बनें; नदियाँ प्रदूषित की गईं ताकि उद्योग चलें; जमीन में रसायन भरे गए ताकि उत्पादन बढ़े; समुद्र में कचरा फेंका गया ताकि लागत कम हो। इस लालच ने जीवन के सभी स्तंभ हिला दिए हैं।
जैव-विविधता मानव जीवन के लिए उतनी ही आवश्यक है जितनी ऑक्सीजन। इसका विनाश यह साबित करता है कि मनुष्य प्रकृति पर निर्भर है, और प्रकृति मनुष्य पर नहीं। यदि जैव-विविधता नहीं होगी तो खाद्य सुरक्षा नहीं होगी; पानी शुद्ध नहीं होगा; हवा सांस लेने योग्य नहीं रहेगी; प्राकृतिक आपदाएँ बढ़ेंगी; और अंततः मानव सभ्यता का अस्तित्व खतरे में पड़ेगा।
③ जैव-विविधता बचाने के 30 उपाय
30 उपायों की सूची
जंगलों की कटाई पर रोक
वनीकरण और पुनर्वनीकरण
नदियों की सफाई
रसायनयुक्त खेती कम करना
जैविक खेती को बढ़ावा
प्लास्टिक उपयोग कम करना
वन्यजीव संरक्षण कानून सख्त करना
विलुप्त प्रजातियों के लिए संरक्षण केंद्र
प्राकृतिक आवासों की सुरक्षा
अवैध शिकार पर कड़ी सजा
जल संरक्षण
मिट्टी संरक्षण
प्रदूषण कम करना
शहरी हरियाली बढ़ाना
समुद्री जीवन की सुरक्षा
कोरल रीफ संरक्षण
जैव-विविधता जनजागरूकता अभियान
पशु-पक्षियों के प्राकृतिक मार्ग सुरक्षित करना
ऊर्जा का नियंत्रित उपयोग
ई-वेस्ट प्रबंधन
जलवायु परिवर्तन को रोकना
नदियों में कचरा रोकना
औद्योगिक कचरे पर नियंत्रण
पर्यावरण शिक्षा
संरक्षण के लिए स्थानीय समुदायों की भागीदारी
दुर्लभ पौधों की सुरक्षा
पारिस्थितिकी आधारित पर्यटन
चराई नियंत्रण
समुद्र तटों की सफाई
अंतरराष्ट्रीय सहयोग
जैव-विविधता की रक्षा केवल सरकारों का कार्य नहीं, बल्कि पूरी मानवता का दायित्व है। सबसे पहले जंगलों की कटाई को रोकना आवश्यक है क्योंकि यही जैव-विविधता का सबसे बड़ा घर हैं। पेड़ केवल ऑक्सीजन ही नहीं देते, बल्कि लाखों जीवों का आश्रय भी हैं। इसके साथ ही नदियों की सफाई अत्यंत आवश्यक है क्योंकि जल-प्रदूषण के कारण मछलियाँ, जलीय पौधे, कछुए, डॉल्फ़िन जैसी प्रजातियाँ तेजी से खत्म हो रही हैं। रसायनयुक्त खेती से मिट्टी में मौजूद सूक्ष्मजीव नष्ट हो रहे हैं, इसलिए जैविक खेती को बढ़ावा देना अत्यंत महत्वपूर्ण है।
प्लास्टिक जैव-विविधता का सबसे बड़ा शत्रु बन चुका है—यह समुद्री जीवन को नष्ट कर रहा है, मिट्टी को विषैला बना रहा है और खाद्य-श्रृंखला में प्रवेश कर रहा है। वन्यजीव संरक्षण कानूनों को सख्त करना, अवैध शिकार रोकना और प्राकृतिक आवासों की सुरक्षा जैव-विविधता को बचाने के लिए अनिवार्य है।
समुद्रों में प्लास्टिक और रसायनों के फैलाव ने कोरल रीफ की 50% आबादी खत्म कर दी है। इसलिए समुद्री जीवन की सुरक्षा अत्यंत महत्वपूर्ण है। पर्यावरण शिक्षा से बच्चों और युवाओं में प्रकृति के प्रति संवेदना बढ़ती है जिससे समाज में व्यापक परिवर्तन संभव है।
जैव-विविधता संरक्षण तभी संभव है जब स्थानीय समुदाय, किसान, आदिवासी, वैज्ञानिक और सरकार मिलकर काम करें। दुर्लभ पौधों की सुरक्षा और बीज बैंकों की स्थापना भविष्य में खाद्य सुरक्षा को मजबूत करेगा। हर घर, हर स्कूल और हर समाज को यह समझना होगा कि जैव-विविधता का विनाश आत्महत्या के समान है।
धरती हमारी जन्मभूमि है, हमारा पहला घर, हमारी सबसे प्राचीन माँ। यह ग्रह इसलिए सुंदर नहीं कि यहाँ पर्वत, नदियाँ, महासागर या जंगल हैं—बल्कि इसलिए सुंदर है क्योंकि यहाँ जीवन की वह अद्भुत विविधता है जो ब्रह्मांड में कहीं और दिखाई नहीं देती। यही विविधता—जैव-विविधता—धरती की आत्मा है, इसकी सांस है, इसका हृदय है। लेकिन आज यह सांस कमजोर पड़ रही है, यह हृदय थकने लगा है, और इसकी आत्मा पर गहरे घाव बन रहे हैं। यह संकट अचानक नहीं आया; यह वर्षों से हमारे अपने कर्मों से जन्मा है। मनुष्य ने प्रगति की दौड़ में प्रकृति को पीछे छोड़ दिया, और आज उसी भूल का परिणाम हमें त्रासदी की तरह दिखाई दे रहा है।फिर भी, आशा है—क्योंकि मनुष्य वही है जिसने संकट पैदा किया, और वही है जो समाधान भी ला सकता है। जीवन की यात्रा में हम एक ऐसे मोड़ पर खड़े हैं जहाँ से या तो हम धरती को पुनर्जीवित कर सकते हैं या उसे पतन की ओर धकेल सकते हैं। यह निर्णय आज, अभी और यहीं लिया जाना है।जरा सोचिए—एक जंगल का कटना केवल पेड़ों का गिरना नहीं, बल्कि लाखों अदृश्य जीवों के घरों का नष्ट होना है। एक नदी का प्रदूषित होना केवल पानी का बदलना नहीं, बल्कि हजारों किलोमीटर तक फैले जीवन-तंत्र के टूटने का संकेत है। किसी एक प्रजाति का विलुप्त होना केवल नाम की कमी नहीं, बल्कि खाद्य-श्रृंखला की एक महत्वपूर्ण कड़ी का खत्म हो जाना है। पृथ्वी का हर जीव, हर पौधा, हर कीट, हर पक्षी—हमारी जिंदगी के संतुलन का एक अनिवार्य स्तंभ है। इनमें से किसी एक का भी गिरना पूरे ढांचे को हिला देता है।जैव-विविधता केवल पर्यावरण की समस्या नहीं है, यह जीवन की समस्या है—मानव-सभ्यता की समस्या है, हमारी आने वाली पीढ़ियों की समस्या है। सोचिए—अगर परागण करने वाले कीट न हों तो भोजन कहाँ से आएगा? अगर औषधीय पौधे न बचें तो बीमारियों का इलाज कैसे होगा? अगर जंगल खत्म हो जाएँ तो वायु शुद्ध कैसे होगी? अगर नदियाँ मर जाएँ तो जल कहाँ से मिलेगा? अगर समुद्री जीवन नष्ट हो जाए तो वैश्विक जलवायु कैसे स्थिर रहेगी?यही कारण है कि जैव-विविधता का संरक्षण केवल वैज्ञानिक आवश्यकता नहीं, बल्कि नैतिक कर्तव्य है। यह केवल पर्यावरणवादियों का आंदोलन नहीं, बल्कि मानव धर्म है। प्रकृति के हर तत्व में जीवन की वही ऊर्जा बहती है जो मनुष्य में है। हम और प्रकृति अलग नहीं—हम प्रकृति ही हैं। हमारी साँसें वृक्षों से जुड़ी हैं, हमारा भोजन मिट्टी से जुड़ा है, हमारी ऊर्जा सूर्य से जुड़ी है, और हमारा अस्तित्व उन अनगिनत जीवों से जुड़ा है जिन्हें हमने कभी देखा भी नहीं।इन सबके बावजूद, मनुष्य ने अपनी इच्छाओं को इतना बढ़ा लिया कि प्रकृति के लिए जगह कम पड़ने लगी। जंगलों को शहर बना दिया गया, नदियों को नालों में बदल दिया गया, समुद्रों को कूड़ेदान बना दिया, और हवा को धुएँ से भर दिया। यह वही ग्रह है जिसने हमें जन्म दिया, लेकिन हमने इसे बीमार कर दिया। मानव सभ्यता का कोई भी विकास उस धरती की कीमत पर नहीं होना चाहिए जो स्वयं हमें जीवन देती है।अगर आज हम नहीं जागे तो आने वाली पीढ़ियाँ हमें कभी माफ़ नहीं करेंगी। वे पूछेंगी—“जब तुम्हें पता था कि धरती खतरे में है, तब तुमने क्या किया? तुमने क्यों मौन धारण किया? तुमने क्यों बदलाव नहीं किया?”हमारे पास इन प्रश्नों का उत्तर होना चाहिए। और उत्तर यही है कि हम अभी से परिवर्तन की शुरुआत करें।हम अपने जीवन में ऐसे छोटे-छोटे परिवर्तन ला सकते हैं जो बड़े परिणाम दें। एक पेड़ लगाना छोटा काम लगता है, लेकिन वही पेड़ एक जीवन, एक आवास, एक हवा का स्रोत बन सकता है। प्लास्टिक न इस्तेमाल करना छोटा निर्णय लगता है, लेकिन यही निर्णय नदी और महासागर के लाखों जीवों की रक्षा कर सकता है। पानी बचाना, ऊर्जा बचाना, कचरा कम करना—ये सब तेज़ी से बदलती धरती के लिए पहले कदम हैं।प्रकृति ने हमेशा हमें दिया—बिना माँगे, बिना रोक-टोक। अब हमारी बारी है लौटाने की। किसी नदी को बचाना, किसी वन्य जीव को बचाना, किसी पौधे को बचाना—ये सब अपने भविष्य को बचाना है। जिस दिन हर मनुष्य समझ जाएगा कि प्रकृति को बचाना ही खुद को बचाना है, उसी दिन जैव-विविधता का संकट समाप्त हो जाएगा।आइए एक प्रतिज्ञा लें—कि जब तक एक भी पौधा रोपा जा सकता है, हम रोपेंगे; जब तक एक भी जीव बचाया जा सकता है, हम बचाएँगे; जब तक एक भी नदी पुनर्जीवित हो सकती है, हम उसे पुनर्जीवित करेंगे। यह धरती हमारी विरासत नहीं, आने वाली पीढ़ियों की धरोहर है। हमें इसे खंडहर नहीं बल्कि हरी-भरी स्वर्ग जैसी दुनिया के रूप में सौंपना है।हम वही पीढ़ी बनें जो इतिहास में “धरती बचाने वाली पीढ़ी” कहलाए—not “धरती नष्ट करने वाली।” आज का समय हमें पुकार रहा है—जागो, उठो, और प्रकृति की रक्षा में अपना योगदान दो। हर कदम मायने रखता है, हर आवाज़ महत्वपूर्ण है, हर छोटा काम एक बड़ी क्रांति का हिस्सा है।आओ मिलकर धरती को उसका खोया संतुलन वापस दें। जीवन की इस पवित्र श्रृंखला को संरक्षित रखें। जैव-विविधता को बचाएँ—क्योंकि यही मानव सभ्यता की सबसे बड़ी शक्ति है, हमारा भविष्य है, हमारा अस्तित्व है।
प्रकृति नमामि जीवनम्।
यह अंश हमारी पुस्तक सर्व साम्य अद्वैत प्रकृति चेतनवाद दर्शन — भाग 1 : नव सवित तत्व प्रकृतिवाद से लिया गया है। इस पुस्तक का उद्देश्य प्रकृति की सर्वोच्च सत्ता की स्थापना करके विश्व में शांति स्थापित करना है, ताकि धरती पर रहने वाले सभी जीवों के जीवन में शांति बनी रहे, मनुष्य के जीवन में भी संतुलन और सौहार्द रहे, तथा सभी मनुष्य आपस में मिल-जुलकर अपने विकास का मार्ग प्रशस्त कर सकें। हमारी प्रकृति से प्रार्थना है कि धरती पर स्थित प्रत्येक जीव सुखी रहे, स्वस्थ रहे।” आप भी चाहते हैं विश्व में शांति तो हमसे संपर्क करें।
जीमेल-: cosmicadvaiticconsciousism@gmail.com
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