दक्षिण एशिया में परमाणु संघर्ष का खतरा

 

मैं संदीप सिंह सम्राट आप सभी को हाथ जोड़कर आप सभी के चरणों में प्रणाम करता हूं और आप सभी से कहता हूं प्रकृति नमामि जीवनम् मेरा आप सभी से निवेदन है कि धरती पर जीवन कायम रखने के लिए समस्त जीव जगत के लिए समस्त मानव जाति के लिए हम सबको मिलकर प्रकृति को बचाना होगा तभी हम सब अपना जीवन बचा सकते हैं और हमारे आने वाली पीढ़ियों का जीवन भी बचा सकते हैं धरती सभी जीवो का एकमात्र घर है इसमें मनुष्य भी शामिल है हम सभी मनुष्यों का पहला घर धरती है हमें अपने घर को बचाना है धरती की सभी जीव हमारे अपने हैं हमें सभी जीवों की सुरक्षा करनी है हम सभी मनुष्य प्रकृति की संतान है और हमारा कर्तव्य है कि हम अपनी मां प्रकृति की सुरक्षा करें और संरक्षण प्रदान करें धरती पर रहने वाले सभी जीव प्रकृति की संतान है और हमारे भाई बहन है हम मनुष्यों को उन सभी की सुरक्षा करनी है हम सबको मिलकर प्रकृति को बचाना है अपने घर को बचाना है अपने भाई बहनों को बचाए रखना है हम सब मिलकर अपने घर की रक्षा करें अपने घर को सुंदर बनाएं फिर से प्रकृति को खुशहाल करें हमारी मुहिम में शामिल हो “एक धरती एक भविष्य” में शामिल होकर अपना महत्वपूर्ण योगदान दें और ज्यादा से ज्यादा लोगों तक अपनी बात पहुंचाएं ताकि हम सभी मनुष्य मिलकर प्रकृति को फिर से पहले जैसा बना सकें हमारा नारा है एक धरती- एक भविष्य-एक मानवता. लिए हम सब मिलकर प्रयास करें अपने घर को सुरक्षित रखें आप सभी से हमारा निवेदन है कि इसे ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचने में हमारी मदद कीजिए हम आपसे कुछ नहीं मांग रहे हम बस इतना चाहते हैं कि हर व्यक्ति अपना कर्तव्य निभाई किसी ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचने में हमारी मदद कीजिए आप हमसे संपर्क कर सकते हैं

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धन्यवाद

भारत–पाकिस्तान तनाव और दक्षिण एशिया में परमाणु संघर्ष का खतरा 

भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव दुनिया का सबसे पुराना और सबसे खतरनाक क्षेत्रीय संघर्ष माना जाता है, क्योंकि यह विवाद दो ऐसे देशों के बीच है जिनके पास परमाणु हथियार मौजूद हैं। दुनिया में बहुत कम ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ राजनीतिक विवाद, धार्मिक विभाजन, ऐतिहासिक टकराव और सैनिक प्रतिस्पर्धा इतनी गहराई से जड़ें जमाए हुए हों। यह तनाव किसी भी क्षण बड़े विनाश का कारण बन सकता है।

 भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष की जड़ें 1947 के विभाजन में हैं। विभाजन केवल सीमाओं का बँटवारा नहीं था, बल्कि करोड़ों लोगों के शोषण, हत्या और विस्थापन का दर्दनाक इतिहास है, जिसने दोनों देशों के बीच स्थायी अविश्वास पैदा किया। कश्मीर का मुद्दा इस तनाव का केंद्र है। भारत पूरे जम्मू-कश्मीर को अपना अभिन्न हिस्सा मानता है, जबकि पाकिस्तान उसे “विवादित क्षेत्र” कहता है। इसी असहमति ने तीन बड़े युद्धों और सैकड़ों छोटे संघर्षों को जन्म दिया है।

 1998 में दोनों देशों द्वारा परमाणु परीक्षण करने के बाद स्थिति और अधिक खतरनाक हो गई। पहले भारत ने पोखरण में परमाणु परीक्षण किया, फिर पाकिस्तान ने चागाई में परीक्षण करके परमाणु शक्ति बनना घोषित किया। इसके बाद दोनों देशों के बीच हर संघर्ष, हर सीमा झड़प, हर आतंकवादी हमला एक संभावित परमाणु युद्ध की आशंका पैदा करने लगा।

 कारगिल युद्ध (1999) इसका सबसे बड़ा उदाहरण था। उस समय भी दोनों देशों के पास परमाणु हथियार मौजूद थे। पूरी दुनिया ने देखा कि कैसे दो परमाणु संपन्न राष्ट्र वास्तविक युद्ध की स्थिति में कुछ ही दिनों तक “बहुत खतरनाक रूप से करीब” पहुँच सकते हैं। यदि कूटनीतिक प्रयास विफल होते, तो दक्षिण एशिया आग का गोला बन जाता।

 सीमा पर लगातार गोलीबारी, घुसपैठ, आतंकवाद और राजनीतिक बयानबाज़ी इस तनाव को बढ़ाते रहते हैं। भारत पाकिस्तान पर आतंकवाद को समर्थन देने का आरोप लगाता है, जबकि पाकिस्तान कहता है कि कश्मीर में आंदोलन स्थानीय जनता की इच्छा है। इस पारस्परिक आरोप–प्रत्यारोप ने दोनों देशों में वैमनस्य बढ़ाया है।

 सबसे चिंताजनक तथ्य यह है कि दोनों देशों के पास छोटे–दायरे में प्रयोग होने वाले टैक्टिकल परमाणु हथियार भी हैं। पाकिस्तान ने NASR मिसाइल विकसित की है, जिसे “युद्ध मैदान में उपयोग” के लिए बनाया गया है। भारत ने “कोल्ड स्टार्ट डॉक्ट्रीन” बनाई थी, जिसका उद्देश्य तेज़ी से जवाबी हमला करना है। इन दोनों रणनीतियों के मेल से “अचानक परमाणु युद्ध” की संभावना बढ़ जाती है।

 भारत और पाकिस्तान में राष्ट्रवाद भी तनाव को हवा देता है। दोनों देशों की राजनीति में अक्सर कठोर बयान दिए जाते हैं, जिन्हें जनता भी भावनात्मक रूप से समर्थन करती है। जब राष्ट्रवाद निर्णयों को प्रभावित करता है, तो युद्ध के जोखिम बढ़ जाते हैं।

 आज की स्थिति में सबसे बड़ा खतरा यह है कि किसी भी आतंकवादी हमले के बाद तनाव अत्यधिक बढ़ सकता है। 2001 संसद हमला, 2008 मुंबई हमला और 2019 पुलवामा हमले के बाद दोनों देशों की सेनाएँ युद्ध के बिल्कुल करीब पहुँच गई थीं। ऐसी घटनाओं से हमेशा यह आशंका रहती है कि अचानक प्रतिक्रिया में युद्ध शुरू हो सकता है।

 यदि भारत–पाकिस्तान के बीच परमाणु युद्ध होता है तो पूरी मानवता को विनाश का सामना करना पड़ेगा। वैज्ञानिक अनुमान बताते हैं कि केवल 100 छोटे परमाणु विस्फोट भी सूर्य की रोशनी को रोक देंगे, तापमान 10–15°C तक गिर जाएगा और “परमाणु शीतकाल” पैदा होगा। इससे वैश्विक कृषि नष्ट हो जाएगी और करोड़ों लोग भूख से मरेंगे।

 इसलिए भारत–पाकिस्तान तनाव केवल दक्षिण एशिया का मुद्दा नहीं, बल्कि पूरी दुनिया की सुरक्षा के लिए खतरा है। दोनों देशों को संवाद, विश्वास और शांति के रास्ते पर लौटना होगा, अन्यथा इस संघर्ष की आग एक दिन पूरी मानव सभ्यता को जला सकती है।


समस्या 4 : कोरियाई प्रायद्वीप में संकट — उत्तर कोरिया और परमाणु युद्ध की आहट 

कोरियाई प्रायद्वीप दुनिया के सबसे संवेदनशील और अस्थिर क्षेत्रों में से एक है। उत्तर कोरिया का परमाणु कार्यक्रम, मिसाइल परीक्षण और आक्रामक रणनीति आज विश्व शांति के लिए सबसे बड़ा खतरा माना जाता है। उत्तर कोरिया दुनिया का एकमात्र ऐसा देश है जो नियमित रूप से मिसाइल परीक्षण करके दुनिया को खुलेआम चुनौती देता है, और जिस पर किसी भी अंतरराष्ट्रीय समझौते का प्रभाव नहीं पड़ता।

 उत्तर कोरिया ने 2006 में पहला परमाणु परीक्षण किया और तब से लगातार अपनी परमाणु क्षमता को मजबूत करता रहा है। उसके पास अब हाइड्रोजन बम से लेकर ICBM मिसाइलें तक मौजूद हैं जो अमेरिका के प्रमुख शहरों तक पहुँच सकती हैं। यह स्थिति पूरी दुनिया के लिए भयानक है क्योंकि उत्तर कोरिया का नेतृत्व अत्यधिक बंद, सैन्यवादी और अनिश्चित माना जाता है।

 उत्तर कोरिया की आक्रामकता के पीछे कई कारण हैं। पहला, वह अमेरिका से सुरक्षा खतरा महसूस करता है और अपने शासन को बचाने के लिए परमाणु हथियारों को “बीमा पॉलिसी” मानता है। दूसरा, उत्तर कोरिया आर्थिक रूप से कमजोर है और परमाणु क्षमता उसे अंतरराष्ट्रीय महत्व देती है। तीसरा, क्षेत्रीय राजनीति—दक्षिण कोरिया, जापान और अमेरिका की साझेदारी—उसे असुरक्षित महसूस कराती है।

 उत्तर कोरिया नियमित रूप से जापान के ऊपर से मिसाइलें दागता है। कभी–कभी वह दक्षिण कोरिया के सैन्य क्षेत्रों पर गोलाबारी भी करता है। यह सब अनियंत्रित युद्ध की स्थिति पैदा कर सकता है, विशेषकर तब जब अमेरिका, दक्षिण कोरिया और जापान संयुक्त सैन्य अभ्यास करते हैं।

 उत्तर कोरिया का परमाणु कार्यक्रम संयुक्त राष्ट्र के लिए भी सिरदर्द है। प्रतिबंध लगाए जाते हैं, लेकिन उत्तर कोरिया उनसे बचने के नए तरीके ढूँढ़ लेता है। चीन और रूस उसकी आंशिक मदद करते हैं, जिससे वह पूरी तरह अलग-थलग नहीं पड़ता।

 उत्तर कोरिया की “पहले प्रयोग की नीति” (First Use) की वजह से स्थिति और खतरनाक हो जाती है। वह घोषित कर चुका है कि यदि उसे खतरा महसूस हुआ तो वह परमाणु हमला कर सकता है। यह न केवल दक्षिण कोरिया बल्कि जापान और अमेरिका के कई सैन्य ठिकानों को जोखिम में डालता है।

 यदि कभी युद्ध हुआ, तो दक्षिण कोरिया और जापान सबसे पहले निशाने पर होंगे। दोनों देशों की जनसंख्या घनी है। किसी भी परमाणु विस्फोट से लाखों लोग तुरंत मारे जाएँगे और बड़ा क्षेत्र रहने योग्य नहीं बचेगा।

 कोरियाई प्रायद्वीप का संकट इसलिए भी खतरनाक है क्योंकि यह “महाशक्तियों का युद्धक्षेत्र” बन सकता है। अमेरिका दक्षिण कोरिया के साथ है, जबकि चीन और रूस उत्तर कोरिया के करीब हैं। किसी भी बड़े संघर्ष में चार परमाणु शक्तियाँ आमने–सामने हो सकती हैं।

 उत्तर कोरिया का निरंतर मिसाइल परीक्षण, सैन्य धमकियाँ, साइबर हमले, और कूटनीति का अभाव दुनिया को एक ऐसे मोड़ पर ले आया है जहाँ एक छोटी सी गलती भी विनाश का कारण बन सकती है। यदि कोरियाई युद्ध फिर से शुरू हुआ तो यह केवल क्षेत्रीय नहीं, बल्कि वैश्विक संकट बन जाएगा।

 इसलिए कोरियाई प्रायद्वीप आज दुनिया के लिए सबसे बड़ा "टाइम बम" है—जो किसी भी क्षण फट सकता है और दुनिया को तीसरे विश्व युद्ध में धकेल सकता है।

उत्तर कोरिया का परमाणु कार्यक्रम और वैश्विक अस्थिरता
उत्तर कोरिया दुनिया के सबसे रहस्यमय, अलग-थलग और अत्यंत सैन्यीकृत देशों में से एक है। इस देश का परमाणु कार्यक्रम पिछले दो दशकों से अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा बना हुआ है। विश्व शक्तियाँ—अमेरिका, जापान, दक्षिण कोरिया, चीन और रूस—सभी इस मुद्दे को लेकर गंभीर हैं, क्योंकि उत्तर कोरिया का नेतृत्व अत्यधिक अप्रत्याशित माना जाता है। किसी भी क्षण उसके द्वारा लिया गया निर्णय क्षेत्रीय ही नहीं, वैश्विक विनाश को जन्म दे सकता है। उत्तर कोरिया की परमाणु महत्वाकांक्षा केवल हथियार बनाने तक सीमित नहीं है; वह अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइलें (ICBM) विकसित कर चुका है, जो अमेरिका समेत पूरे विश्व को निशाना बना सकती हैं। यह स्थिति पृथ्वी पर स्थिरता के लिए अत्यंत खतरनाक है। उत्तर कोरिया ने 2006 में पहला परमाणु परीक्षण किया और तब से वह लगातार अपनी परमाणु क्षमता का विस्तार कर रहा है। उसके पास प्लूटोनियम आधारित हथियार और संभावित हाइड्रोजन बम क्षमता भी है। उत्तर कोरिया की सैन्य रणनीति “परमाणु प्रतिरोध” और “शासन सुरक्षा” पर आधारित है। वह मानता है कि परमाणु हथियार उसकी सरकार को बाहरी हस्तक्षेप से बचाए रखते हैं। यही कारण है कि कोई भी अंतरराष्ट्रीय समझौता उसे हथियार छोड़ने के लिए मजबूर नहीं कर पाया। उत्तर कोरिया की सबसे खतरनाक नीति यह है कि उसने “पहले उपयोग” की संभावना को कभी खारिज नहीं किया। यह बताता है कि यदि उसे किसी भी प्रकार का खतरा महसूस हुआ तो वह परमाणु हथियार का उपयोग कर सकता है। यह स्थिति पड़ोसी देशों—जापान और दक्षिण कोरिया—को अत्यधिक असुरक्षित बनाती है। इनके पास विश्व की सबसे घनी आबादी वाले मेगासिटी हैं। यदि कोई परमाणु हमला होता है, तो लाखों लोग मिनटों में मारे जाएँगे। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सबसे बड़ा खतरा उत्तर कोरिया की मिसाइल तकनीक है। ICBM परीक्षणों ने साबित किया है कि वह अमेरिका के मुख्य भूभाग तक हथियार पहुँचाने में सक्षम हो चुका है। उत्तर कोरिया ने hypersonic missile क्षमता विकसित करने का दावा भी किया है, जो वैश्विक सुरक्षा को और अधिक अनिश्चित बनाता है। अमेरिका इसे राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए सीधा खतरा मानता है, जिससे दोनों देशों के बीच तनाव लगातार बढ़ रहा है। इस तनाव का क्षेत्रीय प्रभाव अत्यंत गहरा है। जापान और दक्षिण कोरिया अपने सैन्य बजट तेज़ी से बढ़ा रहे हैं। वे अमेरिका के साथ संयुक्त सैन्य अभ्यास कर रहे हैं। इससे उत्तर कोरिया उत्तेजित होता है और वह नए परीक्षण करता है, जिससे पूरा क्षेत्र लगातार खतरे में बना रहता है। यह एक दुष्चक्र है जो किसी भी समय बड़े युद्ध का रूप ले सकता है। उत्तर कोरिया की समस्या को और जटिल बनाता है उसका नेतृत्व—किम जोंग उन। उसकी राजनीतिक शैली अत्यधिक केंद्रीकृत, गुप्त और सैन्यवादी है। बाहरी दबाव उसे हथियार छोड़ने के लिए मजबूर नहीं कर सके हैं। संयुक्त राष्ट्र द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों ने भी उसे रोकने में आंशिक सफलता ही पाई है। प्रतिबंधों के कारण उसकी अर्थव्यवस्था कमजोर हुई है, लेकिन परमाणु कार्यक्रम पर इसका प्रभाव नगण्य रहा है। उत्तर कोरिया के कारण एक और बड़ा खतरा है—“परमाणु प्रसार” यानी nuclear proliferation। आशंका है कि आर्थिक दबाव से जूझ रहा उत्तर कोरिया तकनीक या हथियार ऐसे देशों या संगठनों को बेच सकता है जो वैश्विक शांति के दुश्मन हैं। यह स्थिति दुनिया के लिए अत्यंत खतरनाक होगी। यदि उत्तर कोरिया पर हमला होता है या उसके नेतृत्व को खतरा महसूस होता है, तो वह दक्षिण कोरिया की राजधानी सियोल पर कुछ ही मिनटों में हमला कर सकता है। वहाँ करोड़ों लोग रहते हैं। जापान को भी भारी नुकसान हो सकता है। इस क्षेत्र की अर्थव्यवस्था वैश्विक आर्थिक इंजन है। युद्ध होने पर पूरी दुनिया में मंदी, खाद्य संकट, सप्लाई चेन ढहना और वैश्विक बाजार का पतन हो सकता है। इस समय सबसे बड़ी चुनौती यह है कि कूटनीति पूरी तरह विफल नहीं हुई है, लेकिन उसके सफल होने की संभावना कम होती जा रही है। अमेरिका “पूर्ण निरस्त्रीकरण” चाहता है, जबकि उत्तर कोरिया “सुरक्षा गारंटी” चाहता है। दोनों की मांगें एक-दूसरे के विपरीत हैं। यही गतिरोध दुनिया को लगातार युद्ध के खतरे में रखता है। कुल मिलाकर, उत्तर कोरिया का परमाणु कार्यक्रम केवल एशिया ही नहीं, पूरी दुनिया के लिए एक गंभीर संकट है। यह अप्रत्याशितता, अत्यधिक सैन्यवाद, आर्थिक दबाव और राजनीतिक अलगाव का घातक मिश्रण है। यदि इस संकट को नियंत्रित नहीं किया गया, तो यह 21वीं सदी का सबसे बड़ा विनाशकारी युद्ध बन सकता है।
भारत–पाकिस्तान तनाव और परमाणु खतरा 
भारत और पाकिस्तान के संबंध विश्व के सबसे संवेदनशील और जोखिमपूर्ण संबंधों में गिने जाते हैं। यह तनाव केवल सीमा तक सीमित नहीं है, बल्कि धार्मिक, राजनीतिक, ऐतिहासिक, सामरिक और भू-राजनीतिक स्तर पर गहराई तक फैला हुआ है। दुनिया के केवल कुछ ही स्थानों में दो पड़ोसी देश एक-दूसरे के इतने करीब रहते हुए भी परमाणु हथियारों से लैस हैं। भारत और पाकिस्तान दोनों के पास परमाणु बम हैं और यह स्थिति दक्षिण एशिया को वैश्विक स्तर पर सबसे संभावित परमाणु टकराव वाले क्षेत्र में बदल देती है। भारत–पाकिस्तान संघर्ष का इतिहास 1947 से शुरू हुआ। अंग्रेज़ों द्वारा जल्दबाजी में किया गया विभाजन, कश्मीर विवाद, सीमा के पुनर्निर्धारण में की गई त्रुटियाँ और सांप्रदायिक हिंसा ने दोनों देशों के बीच अविश्वास की नींव रखी। यह अविश्वास समय के साथ कम होने के बजाय और बढ़ता गया। भारत और पाकिस्तान चार बड़े युद्ध लड़ चुके हैं—1947, 1965, 1971 और 1999 का कारगिल युद्ध। इसमें कारगिल युद्ध अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि उस समय दोनों देश परमाणु हथियारों से लैस थे। कश्मीर विवाद दोनों देशों के बीच सबसे बड़ा और सबसे खतरनाक मुद्दा है। पाकिस्तान कश्मीर को अपना हिस्सा मानता है जबकि भारत कश्मीर को अपने अभिन्न अंग के रूप में देखता है। दोनों की सेनाएँ हमेशा सीमा पर तैनात रहती हैं। नियंत्रण रेखा (LoC) पर लगातार गोलीबारी होने से तनाव कभी कम नहीं होता। कश्मीर का यह टकराव परमाणु युद्ध का संभावित स्रोत बन चुका है। यदि किसी भी पक्ष की ओर से कोई बड़ी सैन्य गलती या गलतफहमी हो जाए, तो यह संघर्ष परमाणु युद्ध तक जा सकता है। पाकिस्तान की राजनीतिक अस्थिरता भी इस खतरे को और बढ़ाती है। पाकिस्तान में कई बार सैन्य शासन रहा है और आज भी सेना की भूमिका अत्यंत प्रभावशाली है। कमजोर सरकारें, आर्थिक संकट और आंतरिक आतंकवाद इसे अस्थिर देश बनाते हैं। एक अस्थिर राष्ट्र के पास परमाणु हथियार होना विश्व के लिए गंभीर खतरा है। पश्चिमी और एशियाई सुरक्षा विश्लेषकों का मानना है कि पाकिस्तान के अंदर कई चरमपंथी संगठन सक्रिय हैं—ऐसे में सैन्य या परमाणु संस्थानों पर आतंकवादियों की नजर हमेशा बनी रहती है। भारत और पाकिस्तान दोनों के पास “टैक्टिकल न्यूक्लियर वेपन्स” हैं, जिन्हें सीमित युद्ध में भी इस्तेमाल किया जा सकता है। यह हथियार छोटे होते हैं लेकिन अत्यधिक विनाशकारी होते हैं। पाकिस्तान ने यह हथियार इसलिए विकसित किए ताकि यदि भारत “सर्जिकल स्ट्राइक” जैसा कोई अभियान करे, तो वह जवाब में छोटे परमाणु हथियार इस्तेमाल कर सके। यह रणनीति “न्यूक्लियर वॉर को आसान” बना देती है, जबकि परमाणु युद्ध का कोई भी रूप वास्तव में कभी छोटा नहीं होता। पुलवामा हमला (2019) और बालाकोट एयरस्ट्राइक ने यह साबित किया कि भारत–पाकिस्तान तनाव किसी भी समय खुलकर सामने आ सकता है। उस समय दोनों देशों ने एक-दूसरे के सैन्य विमानों को गिराया, और कुछ ही घंटे ऐसे थे जब दुनिया ने सोचा कि शायद दक्षिण एशिया में पूर्ण युद्ध शुरू होने वाला है। इस घटना ने दुनिया को दिखाया कि दो परमाणु शक्तियाँ कितनी आसानी से युद्ध की कगार पर पहुँच सकती हैं। भारत की बढ़ती आर्थिक और सैन्य शक्ति पाकिस्तान के अंदर असुरक्षा की भावना बढ़ाती है। पाकिस्तान इस शक्ति संतुलन को बनाए रखने के लिए अतिरिक्त हथियार खरीदता है और चीन के साथ मिलकर सामरिक साझेदारी को मजबूत करता है। इससे भारत को खतरा महसूस होता है, और दोनों देशों की सैन्य होड़ लगातार बढ़ती जाती है। चीन–पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) भी भारत–पाकिस्तान तनाव को बढ़ाता है। भारत इसे अपनी संप्रभुता पर खतरा मानता है क्योंकि यह गलियारा पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से गुजरता है। चीन की बढ़ती उपस्थिति ने इस क्षेत्र को पहले से कहीं अधिक सैन्य रूप से संवेदनशील बना दिया है। परमाणु हथियारों की होड़ भारत–पाकिस्तान संबंधों को और अधिक खतरनाक बना रही है। दोनों देश अपनी मिसाइल तकनीक लगातार उन्नत कर रहे हैं। पाकिस्तान के पास शहीन, घौरी और बाबर मिसाइलें हैं, जबकि भारत के पास अग्नि, पृथ्वी और ब्रह्मोस जैसी मिसाइलें हैं। ये मिसाइलें मिनटों में एक देश से दूसरे देश तक पहुंच सकती हैं। ऐसी स्थिति में निर्णय लेने के लिए समय बहुत कम बचता है, जिससे गलत निर्णय का खतरा बढ़ जाता है। यदि भारत–पाकिस्तान के बीच कभी परमाणु युद्ध हुआ, तो अनुमान है कि पहले 24 घंटों में 10 करोड़ से अधिक लोग मरेंगे। धूल, धुआँ और रेडिएशन पूरे विश्व में फैल जाएगा। वैज्ञानिक अध्ययन बताते हैं कि भारत–पाकिस्तान परमाणु युद्ध से “Mini Nuclear Winter” जैसी स्थिति बन सकती है—विश्व का तापमान गिर जाएगा, कृषि नष्ट होगी और वैश्विक अकाल फूट सकता है। इस प्रकार भारत–पाकिस्तान तनाव केवल दो देशों की समस्या नहीं है, बल्कि पूरी मानवता के लिए खतरा है। वैश्विक समुदाय को इस पर विशेष ध्यान देना चाहिए। दोनों देशों के बीच शांति सिर्फ दक्षिण एशिया ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व की स्थिरता के लिए अनिवार्य है।
प्रकृति नमामि जीवनम्।

यह अंश हमारी पुस्तक सर्व साम्य अद्वैत प्रकृति चेतनवाद दर्शन — भाग 1 : नव सवित तत्व प्रकृतिवाद से लिया गया है। इस पुस्तक का उद्देश्य प्रकृति की सर्वोच्च सत्ता की स्थापना करके विश्व में शांति स्थापित करना है, ताकि धरती पर रहने वाले सभी जीवों के जीवन में शांति बनी रहे, मनुष्य के जीवन में भी संतुलन और सौहार्द रहे, तथा सभी मनुष्य आपस में मिल-जुलकर अपने विकास का मार्ग प्रशस्त कर सकें। हमारी प्रकृति से प्रार्थना है कि धरती पर स्थित प्रत्येक जीव सुखी रहे, स्वस्थ रहे।” आप भी चाहते हैं विश्व में शांति तो हमसे संपर्क करें।

जीमेल-: cosmicadvaiticconsciousism@gmail.com

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